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________________ (१.१०) विभाव में चेतन कौन? पुद्गल कौन? १३१ दादाश्री : नहीं करता है। यदि करेगा तो वापस उससे चिपक पड़ेंगे। प्रश्नकर्ता : अर्थात् कर सकता है। करने की उसके पास सत्ता तो है न? दादाश्री : हाँ। लेकिन यदि आपने' आज्ञा का पालन नहीं किया तो विशेष भाव होगा ही। जो आज्ञा पालन नहीं करेगा न, उसे यह सब हो सकता है। जो आज्ञा पालन करेगा उसे ऐसा कुछ भी नहीं होगा। प्रश्नकर्ता : तो चेतन की ताकत तो है न, विशेष भाव करने की? दादाश्री : नहीं, वह तो संयोगों का असर है। नींव में सर्वत्र संयोग ही हैं प्रश्नकर्ता : तो फिर संयोग और चेतन दोनों, अनंत हैं ? दादाश्री : हाँ, अनंत हैं। प्रश्नकर्ता : तो साथ ही संयोग भी अनंत हुए न? दादाश्री : हाँ, संयोग अनंत हैं। अनादि से, अनंत काल तक का है लेकिन यदि अलग किया जाए तब तो कुछ हुआ ही नहीं है। ये सब खत्म हो जाएँगे और दोनों अपने-अपने स्वभाव में आ जाएँगे। आमनेसामने जो प्रभाव पड़ रहा था, वह खत्म हो जाएगा। 'यह मैं नहीं हूँ' कहते ही सबकुछ एकदम से अलग हो जाएगा। प्रश्नकर्ता : लेकिन अलग होने के बाद में भी वे संयोग तो रहेंगे ही न? दादाश्री : संयोगों का सवाल नहीं हैं। संयोगों से ही अज्ञान उत्पन्न हुआ था। वह अज्ञान चला गया तो संयोग अपने आप ही धीरे-धीरे छूटते-छूटते खत्म हो जाएँगे। संयोगों के आधार पर अहंकार खड़ा हुआ है और अहंकार के आधार पर संयोग टिका हुआ है। जिसका अहंकार चला गया उसके संयोग चले गए। यह सब रोंग बिलीफ की वजह से है।
SR No.034306
Book TitleAptavani 14 Part 1 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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