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________________ १२९ (१.१०) विभाव में चेतन कौन? पुद्गल कौन? परिणामों की परंपरा... प्रश्नकर्ता : इस विशेष भाव के उत्पन्न होने के बाद, उसका सातत्य किस आधार पर रहा हुआ है? दादाश्री : उसके बाद तो फिर विशेष भाव में से वापस विशेष भाव ही उत्पन्न होते रहते हैं। फिर तो उसकी खुद की मान्यता ही पूरी डिफरन्ट हो गई न, बदल गई न! अब फिर जब उसे वापस ऐसा भान होता है कि 'खुद कौन हूँ और मेरा अपना स्वभाव क्या है', तब वह उसे विशेष भाव से बाहर निकालता है, कि 'भाई, आप यह नहीं हो, यह नहीं हो, यह नहीं हो। आप यह हो'। तब फिर सब विलय हो जाता है। स्वरूप जागृति चली गई न, इसलिए फिर सातत्य बचा और जब वह स्वरूप जागृति आ जाती है तो फिर वापस जैसे था वैसे का वैसा ही हो जाता है, सातत्य चला जाता है। खुद बिल्कुल भी नहीं बदला है। पूरी रोंग बिलीफ ही लग गई है, इस विशेष भाव की वजह से। प्रश्नकर्ता : इस विशेष भाव में से भावक उत्पन्न हुआ है? दादाश्री : हाँ, भावक उत्पन्न हो गया है। प्रश्नकर्ता : अब, भावक और भाव, एक ही हैं या अलग हैं ? दादाश्री : दोनों अलग हैं। भावक अर्थात् आपको भाव नहीं करने हों फिर भी करवाता है, उसे कहते हैं भावक। भावक, भाव करवाता है। इस शरीर में भावक जैसी तो कितनी ही चीजें हैं। क्रोधक, क्रोध करवाता है। लोभक, लोभ करवाता है। ऐसे 'क' वाले तो अंदर बहुत सारे हैं। उन्हीं की आबादी बढ़ गई हैं। ऐसे में मूल राजा की क्या दशा होगी? बाकी की बस्ती बेहिसाब है! प्रश्नकर्ता : भावक ने भाव करवाए, उनमें से फिर दूसरे भाव उत्पन्न हुए तो अब फिर उनकी वजह से यह सातत्य रहा है? दादाश्री : उसके बाद फिर भावक मज़बूत होता जाता है। जैसेजैसे भावक भाव करवाता है और हम वे भाव करें तब भावक मज़बूत
SR No.034306
Book TitleAptavani 14 Part 1 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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