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________________ आप्तवाणी - १४ ( भाग - १ ) प्रश्नकर्ता : अर्थात् अहंकार को आत्मस्थिति में आना पड़ता है ? दादाश्री : आत्मस्थिति में आना पड़ता है । अहंकार को शुद्ध करना पड़ेगा। तब तक डेवेलपमेन्ट चलता रहता है I ११८ प्रश्नकर्ता : विभाव और स्वभाव, इन दोनों के बीच क्या पारस्परिक संबंध है ? दादाश्री : उनके बीच कार्य-कारण का संबंध है ही नहीं । (डेवेलपमेन्ट की स्थिति है ।) विशेष परिणाम में भी अनंत शक्ति प्रश्नकर्ता: इन सभी जीवों का यह जो ज्ञान है, यों तो वह सारा व्यवहार और पुद्गल (जो पूरण और गलन होता है) से संबंधित ही है न ? दादाश्री : हाँ, वह भी पुद्गल ही है लेकिन इस प्रकार प्रकट होता है। यह जो प्रकट हुआ है, वह सिर्फ आत्मा में से ही निकला हुआ है। अर्थात् इन सभी जीवों में से जो निकलता है न, वह ज्ञान है। वह आत्मा में से ही निकलता है। आत्मा के विशेष परिणाम हैं। आत्मा के विशेष परिणामों में बहुत अधिक शक्ति है । उनमें अनंत ज्ञान शक्ति है I अर्थात् यह सारी अनंत शक्ति सिर्फ आत्मा का ही परिणाम है। वह आवरण किसी में यहाँ से टूटा, किसी में यहाँ से टूटा, किसी में यहाँ से। इस प्रकार सभी में जहाँ से टूटा वहीं से सभी में ज्ञान प्रकट होता है। लेकिन जब पूरा टूट जाए, तब । लेकिन विशेष परिणाम के रूप में बाहर आना चाहिए। बाकी, सिर्फ आत्मा में ही सारा ज्ञान है! है प्रत्येक द्रव्य, निज द्रव्याधीन प्रश्नकर्ता : यदि ये सभी पुद्गल हैं तो यह पुद्गल किसके अधीन दादाश्री : जिसे अजंपा (बेचैनी, अशांति, घबराहट) होता है, उसके। जिसे अजंपा नहीं होता, उसमें पराधीन भी कहाँ है ?
SR No.034306
Book TitleAptavani 14 Part 1 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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