SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 182
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [९] स्वभाव और विभाव के स्वरूप जगत् चलता है स्वभाव से ही यह पूरी दुनिया स्वभाव से चल रही है I प्रश्नकर्ता : यह स्वभाव क्या चीज़ है ? दादाश्री : हर एक द्रव्य अपने-अपने स्वभाव का ही प्रदर्शन करता है । ये जो द्रव्य हैं, वे सत् हैं इसलिए अविनाशी हैं। वे निरंतर परिवर्तनशील हैं और खुद के स्वभाव में ही रहते हैं। प्रश्नकर्ता : जिस प्रकार से रात स्वभाव से पड़ती है, ऐसा कहा है और दिन भी स्वभाव से ही उगता है, तो यह अंतःकरण, वाणी वगैरह...? दादाश्री : सब स्वभाव से ही हैं । यदि पुद्गल है तो पुद्गल के स्वभाव से और यदि चेतन है तो चेतन के स्वभाव से । अब, ये सारी बातें शास्त्रों में नहीं मिलतीं और पुस्तकों में भी नहीं मिलतीं । है न ? प्रश्नकर्ता : नहीं मिलतीं, दादा । वे तो सिर्फ दादा के कम्प्यूटर में ही मिलती हैं। यह पुद्गल अपने स्वभाव से ही चल रहा है, क्या उसमें चेतन का कोई कनेक्शन है ? दखलंदाजी ? दादाश्री : जो दखल करे, वह चेतन कहलाएगा ही नहीं । स्वभाव से चल रहा है और चलाने वाला साइन्टिफिक सरकमस्टेन्शियल एविडेन्स है । प्रश्नकर्ता: किस-किस के स्वभाव ?
SR No.034306
Book TitleAptavani 14 Part 1 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy