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________________ आप्तवाणी - १४ (भाग-१) दादाश्री : होशियार यानी कि वे इस पद्धति से कहते हैं, पौद्गलिक में, भौतिक में कहते हैं । इस ( आध्यात्मिक) पद्धति को नहीं जानते । भौतिक में जस्ता जस्ते के गुणधर्म में रहता है । लोहा लोहे के गुणधर्म में रहता है लेकिन दोनों के साथ में रखने से एक तीसरा नया गुणधर्म उत्पन्न हो जाता है। ८४ पहली बार जब ज़मीन पर बरसात होती है न, तब ज़मीन में से खूश्बू आती है क्योंकि दो चीजें एक साथ आई इसलिए तृतियम् हो गया, विशेष परिणाम । उसी प्रकार से यह विशेष परिणाम है । फिर कर्म बंधन होते समय छः तत्त्व हैं प्रश्नकर्ता : जड़ और चेतन के सानिध्य से यह विशेष भाव हो जाता है। हम ऐसा कहते हैं न ! तो वास्तव में क्या ऐसा नहीं कह सकते कि छः तत्त्वों के सानिध्य से विशेष भाव उत्पन्न होता है ? दादाश्री : नहीं, ऐसा नहीं है । दो से ही भ्रांति उत्पन्न होती है लेकिन बाकी के चार तत्त्व हेल्प करते हैं उसमें । प्रश्नकर्ता : हाँ ! लेकिन जब विशेष भाव उत्पन्न होता है तब क्या अन्य तत्त्वों की ज़रूरत पड़ती हैं ? दादाश्री : विभाव की शुरुआत इन दोनों से होती है और छः तत्त्वों से, कर्म होते समय वे छः तत्त्व इकट्ठे हो जाते हैं । ऐसा है न, फिर जब वह कर्म होता है तो उसकी ज़रूरत का सबकुछ वहाँ मिल जाता है। प्रश्नकर्ता : लेकिन विशेष भाव होने में तो दो ही हैं न ? दादाश्री : दो की ही ज़रूरत है । दो हों तो भी बहुत हो गया । प्रश्नकर्ता : उसके लिए छ: की ज़रूरत नहीं है ? दादाश्री : बाकी सभी की ज़रूरत नहीं है, बाकी सब मिल जाते हैं। ये रूपी और अरूपी, यह चेतन अरूपी है और यह जड़ रूपी है, तो इन दोनों के संयोग से यह उत्पन्न होता है।
SR No.034306
Book TitleAptavani 14 Part 1 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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