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________________ (१.५) अन्वय गुण-व्यतिरेक गुण हैं और दो वस्तुओं को नज़दीक लाने से तीसरा ही परिणाम उत्पन्न हो जाता है। ६१ प्रश्नकर्ता: दादा, इसका अर्थ ऐसा हुआ न कि, ज्ञान था, अज्ञान था, ये दोनों पास-पास आए इसलिए ... दादाश्री : (मूल आत्मा में) अज्ञान तो था ही नहीं । अज्ञान जैसी चीज़ ही नहीं थी । यह अज्ञान तो खड़ा हो गया है । जैसे कि वे सेठ जब शराब पीते हैं न, तो शराब पीने से पहले कुछ था ? प्रश्नकर्ता : नहीं था । दादाश्री : वैसा ही है । उसका असर हो गया है। ‘उस पर' संयोगों का असर हो गया है । प्रश्नकर्ता : अकारण तो कुछ होता ही नहीं है न ? दादाश्री : नहीं ! कारण में, उसे संयोग मिले इसलिए हो गया । अब संयोगों से मुक्त हो जाएगा तो छूट जाएगा । प्रश्नकर्ता : अर्थात् ज्ञान के सामने संयोग आ गया ? दादाश्री : हाँ! आत्मा और दूसरे संयोग । (स्वाभाविक) ज्ञान, वह (मूल) आत्मा है और दूसरे संयोग मिल गए इसलिए भ्रांति उत्पन्न हुई । प्रश्नकर्ता : अत: उसे संयोगों का स्पर्श हुआ ? दादाश्री : संयोगों का दबाव आया । (इसलिए विशेष भाव, 'मैं', व्यवहार आत्मा, उत्पन्न हो गया ।) प्रश्नकर्ता : क्योंकि आत्मा पर तो कोई असर नहीं होता फिर भी असर क्यों हुआ ? दादाश्री : हुआ न असर । ( व्यवहार आत्मा पर ) असर हुए बगैर रहेगा ही नहीं न! फिर भी (मूल) आत्मा जैसा था वैसा ही है । सिर्फ बिलीफ ही बदली है ।
SR No.034306
Book TitleAptavani 14 Part 1 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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