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________________ (१.५) अन्वय गुण-व्यतिरेक गुण ५९ प्रश्नकर्ता : यह जो भ्रांति खड़ी हो गई है, यह जो माया उत्पन्न हो गई है, क्या यही वह विशेष भाव है? दादाश्री : माया अर्थात् एक प्रकार की अज्ञानता, 'खुद कौन हूँ', उसकी अज्ञानता। उस विशेष भाव में से उत्पन्न हुआ, 'मैं' और 'मैं कर रहा हूँ। प्रश्नकर्ता : अहंकार और मोहनीय कर्म, इन दोनों का ज़रा विश्लेषण करके समझाइए। दादाश्री : मोहनीय कर्म और अहंकार दोनों अलग हैं। वह जो शराब पी, उससे मोहनीय उत्पन्न हुआ। अर्थात् जो अहंकार था, वह मोहनीय की वजह से ही, 'मैं राजा हूँ', और ऐसा सब कहता है। पहले, 'मैं नगीनदास सेठ हूँ', थे और अब यह उल्टा-सीधा बोल रहे हैं, उन्होंने शराब पी ली है इसलिए। उसी प्रकार से यह पुद्गल की शराब है। प्रश्नकर्ता : शराब का असर होने से ऐसे संयोग खड़े हो गए, तो जन्म-मरण वाले वे संयोग कैसे होते हैं? वह ज़रा विशेष रूप से समझाइए। दादाश्री : आत्मा को घूमना ही नहीं पड़ता। आत्मा तो अपने स्वभाव में ही है। यह तो घनचक्कर (अहंकार) घूमता है। कौन घूमता है ? 'साहब, मुझे पाप लगा, मुझे पुण्य मिला', वह घूमता रहता है। मैंने किया, मैंने भोगा', वह कौन है, उसे पहचानते हो आप? सिर्फ इगोइज़म ही है। जिसके इगोइज़म का नाश हो गया कि, उसे आत्मा प्राप्त हो गया। यह इगोइज़म तो एक लफड़ा है, जो खड़ा हो गया है। नहीं है आत्मा की कोई वंशावली प्रश्नकर्ता : आप कहते हैं कि, 'आप चंदूभाई, इनके हज़बेन्ड हो, इनके फादर हो, इनके मौसा हो', ये सब एक शुद्धात्मा की ही वंशावली है न? बहुत सारे आत्माओं ने इकट्ठे होकर उलझन में डाल
SR No.034306
Book TitleAptavani 14 Part 1 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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