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________________ (१.५) अन्वय गुण-व्यतिरेक गुण ५३ प्रश्नकर्ता : लेकिन दादाश्री, इसे ज़रा और अधिक स्पष्ट रूप से समझाने की ज़रूरत है। ये अन्वय संबंध, उनसे क्या होता है? दादाश्री : वह खुद की मालिकी का है। ज्ञान-दर्शन, वह सब खुद की मालिकी का है, सिर्फ खुद का ही। बाकी सब यह जो पूरणगलन होता है, वह अन्वय संबंध नहीं है। वे तो चले जाएँगे कुछ देर बाद। पूरा जगत् इसी में फँसा हुआ है। अब व्यतिरेक पर शास्त्रों में जो कहा गया है, वह क्या लोगों को दिखाई देता होगा? प्रश्नकर्ता : इतने आत्मा के गुण हैं और इतने व्यतिरेक गुण हैं उन्हें रट-रटकर जुबानी कर लिया है लेकिन कुछ समझ में ही नहीं आता न! दादाश्री : ऐसा चलेगा ही नहीं न! रट-रटकर जुबानी करने से क्या होगा? अन्वय गुण, अन्वय गुण, लेकिन भाई! अन्वय गुण का मतलब क्या है ? उसका विरोधी गुण कौन सा है ? तो वह है व्यतिरेक। तो व्यतिरेक का मतलब क्या है ? सिर्फ शब्द गाते रहने से ही क्या कुछ बदल जाएगा? बोलते ही समझ में आना चाहिए कि कौन सा? बोलते ही व्यू पोइन्ट तो पहुँचना चाहिए, दृष्टि पहुँचनी चाहिए। प्रश्नकर्ता : भाव और गुण में क्या फर्क है? आत्मा के ये भाव और आत्मा के ये गुण, इन दोनों में क्या फर्क है? दादाश्री : भाव दो प्रकार के होते हैं, एक स्वभाव होता है और दूसरा विभाव। स्वभाव के गुण कहलाते हैं सारे, वे आत्मा के गुण कहलाते हैं और दूसरा, जिनमें विशेष भाव हो तो वे व्यतिरेक गुण हैं अर्थात् आत्मा के नहीं हैं। प्रश्नकर्ता : आत्मा का अन्य पदार्थ के साथ मिक्स्चर होने से उत्पन्न हुए हैं? दादाश्री : हाँ! कल यदि सूर्य, चंद्र, पृथ्वी सब एक साथ आ गए
SR No.034306
Book TitleAptavani 14 Part 1 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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