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________________ ( १२ ) अर्थ-शतपत्र अर्थात् कमल समान नयन से रमणीय और लोगों के नयनों में हर्ष के प्रसार को पल्लवित करने वाली जिनकी शारीरिक संपदा तपनीय अर्थात् सुवर्ण की कांति के समान थी॥१॥ बाल्यकाल से ही जिनका चारित्र लोगों में चमत्कार पैदा करने वाला और बावीस परिषहों को सहन करने से दुर्जय और तीव्र तप के कारण उत्तम था ॥ २ ॥ विषमार्थ शास्त्र के बोध वाली, व्याकरणादि ग्रंथों को रचने वाली और परवादी का पराजय कर कीर्ति प्राप्त करने वाली जिनकी बुद्धि थी ॥३॥ मिथ्यात्व से मूच्छित बने हुओं को भी धर्मबोध देने वाला जिनका धर्मकथन अतुच्छ और मधु-क्षीर प्रमुख माधुर्य वाला था—इत्यादि गुणों वाले हेमचन्द्राचार्यजी भगवंत को देख कर, चतुर-निपुणजन अदृष्ट तीर्थकर और गणधर भगवंतों पर भी श्रद्धा करते हैं ।। ४-५॥ -श्री सोमप्रभसूरि कृत प्रबंध (8) सप्तर्षयोऽपि सततं गगने चरन्तो, रक्षुक्षमा न मृगी मृगयोः सकाशात् । जीयाच्चिरं कलियुगे प्रभुहेमसूरि-रेकेन येन भुवि जोववधो निषिद्धः ।। -विविधगच्छीय पट्टावली संग्रह अर्थ-आकाश में सतत घूमने वाले सप्तर्षि भी शिकारी के पास से हरिणी का रक्षण करने में समर्थ न बन सके, जबकि कलियुग में (प्रभु हेमचन्द्राचार्यजी ने) अकेले ही पृथ्वी पर जीववध का निषेध करा दिया, ऐसे हेमचन्द्र प्रभु दीर्घ काल तक जय पाएँ। (१०) गुरुगुर्जरराजस्य, चातुर्विधकसृष्टिकृत् । त्रिषष्टिनरसवृत्तकविर्वाचां न गोचरः ।। -श्री मुनिरत्नसूरि कृत अममचरित्र अर्थ-गुर्जर सम्राट के गुरु, चार प्रकार की विद्याओं का सर्जन करने में विशिष्ट और त्रिषष्टिशलाका पुरुषों के पवित्र चरित्र को लिखने में कवि ऐसे श्री हेमचन्द्राचार्यजी गणी से अगोचर हैं अर्थात् इस वाणी द्वारा उनकी स्तुति शक्य नहीं है। (११) वैदुष्यं विगताश्रयं श्रितवति श्रीहेमचन्द्रे दिवम् ।' -राजकवि सोमेश्वरदेवरचित सुरथोत्सव अर्थ-श्री हेमचन्द्र प्रभु के स्वर्ग-गमन पर विद्वत्ता आश्रयरहित हो गई। प्रचंड प्रतिभा के स्वामी कलिकाल सर्वज्ञ श्रीमद् हेमचन्द्राचार्यजी भगवंत की दैविक-प्रतिभा के दर्शन हमें उनकी कृतियों में मिलते हैं। प्राचीन-अर्वाचीन अनेक विद्वानों ने उनकी काव्य-कृतियों की मुक्तकंठ से प्रशंसा की है। संस्कृतभाषा-बोध के लिए आज तक अनेक व्याकरण-ग्रन्थ रचे गए हैं, उन ग्रन्थों में इस व्याकरण-ग्रन्थ को अपनी मौलिक विशेषताएँ हैं, जो अध्यापक व पाठकगण स्वयं ही समझ सकते हैं।
SR No.034257
Book TitleSiddh Hemhandranushasanam Part 03
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorUdaysuri, Vajrasenvijay, Ratnasenvijay
PublisherBherulal Kanaiyalal Religious Trust
Publication Year1986
Total Pages570
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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