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________________ देश-विदेश के कोने-कोने में उनकी साहित्य सृष्टि फैली हुई है । वे एक महान् योगी थे प्रकांड विद्वान व शास्त्रज्ञ थे, वे एक महान् साहित्यकार-कवि-लेखक और एक महान् आत्मसाधक युग महर्षि थे। विराट व्यक्तित्व के स्वामी कलिकाल सर्वज्ञ श्रीमद् हेमचन्द्राचार्यजी के तेजस्वी व्यक्तित्व, का परिचय देने का सामर्थ्य इस कलम में कहाँ से आए ?...फिर भी 'शुभकार्य में यथाशक्य प्रयत्न करना चाहिये-इसी न्याय को ध्यान में रखकर उस महान् विभूति के विराट व्यक्तित्व के यत् किंचित् परिचयात्मक यह प्रयास किया जा रहा है । इस पवित्र भारत भूमि के इतिहास में गुजरात राज्य का महान् गौरवपूर्ण स्थान रहा । गुजरात की भूमि तीर्थ-भूमि है...अनेक पवित्रतम तीर्थो को अपनी गोद में लिये वह वैठी हैं । यह पवित्रतम अनेक संत महषियों की जन्मदात्री-जनेता रही है । 'कम्मेसुरा और धम्मसुरा' जैसे अनेक कर्मवीर और धर्मवीरों को इसने पैदा किया है । मानव के विशाल भाल समान गुजरात का 'भाल -प्रदेश' सुविख्यात है । इस भाल-प्रदेश में 'धंधुका' नाम प्रख्यात नगर हैं । इस नगर में बारवी शताब्धि में मोढ वणिको की बस्ती अत्याधिक प्रमाण में थी। मौढ परिवार में चाचिग का अपना एक विशिष्ट स्थान था । एक बार चाचिग की पत्नी पाहिनी रात्रि में सो रही थो ..तभी उसने एक भव्य स्वप्न देखा । स्वप्न के अन्दर 'उसे चिंतामणी रत्न की प्राप्ति हुई और उसने वह चिंतामणी रत्न गुरुदेव के चरणों में भेंट धर दिया ।' ऐसा देखा । । इसी बीच पूज्य आचार्यश्री देवचन्द्रसूरिजी म. धंधूका में विराजमान थे । दूसरे दिन पाहिनी ने अपने स्वप्न की बात गुरुदेव के सामने प्रगट की स्वप्न सुनकर क्षणभर विचारमग्न बने गुरुदेव ने कहा, 'पाहिनी ! तू एक महान् चिंतामणी के सर्जन की पूर्व भूमिका रूप हैं...तू जिनशासन के प्रभावक पुरुष की जन्मदात्री बनेगी । गुरुदेवश्री के मुख से इस भविष्यवाणी को सुनकर पाहिनी का हृदय पुलकित हो उठा । उसने अपने घर की ओर प्रस्थान किया । स्वप्न दर्शन की रात्रि में ही पाहिनी के गर्भ में एक महान् आत्मा का अवतरण हुआ था। धीरे धीरे पाहिनी के देह पर गर्भ के चिन्ह दिखाई देने लगे । ___ गर्भ में एक महान् आत्मा के आगमन के फलस्वरूप पाहिनी के हृदय में विविध प्रकार के उत्तम दोहद पैदा होने लगे । जिनमन्दिर में भगवान की भव्य प्रविष्ठा व परमात्मा की भव्य अंग रचना तथा अन्य जीवोंको अभयदान देने आदि के शुभ दोहद पाहिनी के मन में प्रगट हुए और चाचिग ने उन सब दोहदों को पूर्ण करने में पूर्ण सहायता की। पाहिनी गर्भ का सुखार्वक पालन करने लगी और एक दिन उसके लिए सोने का सूरज उग गया । वह दिस था कार्तिक शुक्ला पूर्णिमा...संवत् ११४५ का...जिस दिन उसने जिन शासन के महान् प्रभावक पुरुष को जन्म प्रदान किया ।
SR No.034255
Book TitleSiddh Hemhandranushasanam Part 01
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorUdaysuri, Vajrasenvijay, Ratnasenvijay
PublisherBherulal Kanaiyalal Religious Trust
Publication Year1986
Total Pages658
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size25 MB
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