SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 18
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १४ ) और स्थानक ये दोनों एक ही अर्थ के वाचक माने जाते हैं, उसी प्रकार मूल जैनागमों में भी कहीं पर स्थान शब्द की जगह स्थानक शब्द का उल्लेख है या नहीं? इसके उत्तर में इतना ही कहा जा सकता है कि समवायांग सूत्र में द्वादशाङ्गी का वर्णन करते हुए समवायांगसूत्र के अधिकार में एक सूत्रपाठ दिया गया है उसमें "ठाणगसयस्स"-[ स्थानकशतस्य ] ऐसा उल्लेख है। यहाँ पर स्थान शब्द के अर्थ में स्थानक शब्द का विधान स्पष्ट देखने में आता है। इसलिये श्रागम भो स्थान और स्थानक शब्द की अभिन्नता का ही समर्थक है । वास्तव में सर्वोत्कृष्ट और सर्वातिशायी जो स्थान है, ॐ सूत्रपाठ इस प्रकार है समवाएणं एवाइयाणं एगट्ठाणं एगुत्तरीय परिवुड्डीय दुवालसंगस्स गणिपिडगस्स पल्लवग्गो समणुगाहिज्जइ ठाणगसयस्स वारसविह वित्थरस्स सुयणाणस्स जगजोवहियस्स भगवओ समासे णं समोयारे अहिज्जति ॥ ____ इसके अतिरिक्त प्रमाणनयतत्वालोक के अष्टम परिच्छेद के १९ वें सूत्र के निम्नलिखित पाठ में भी स्थान शब्द के अर्थ में स्थानक शब्द का प्रयोग किया गया है वादिप्रतिवादिनोर्यथायोगं वादस्थानककथाविशेषांगीकारणाप्रवादोचरवादनिर्देशः” इत्यादि । For Private and Personal Use Only
SR No.034247
Book TitleSthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAatmaramji Maharaj
PublisherLala Valayati Ram Kasturi Lal Jain
Publication Year1942
Total Pages23
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy