SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 9
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दिगम्बर जैन । अब मैं जानी समता बिन मुझ, कोऊ नाहिं सहाई । मात पिता सुत बान्धव तिरिया, ये सब हैं दुखदाई । २४ ॥ मृत्यु समयमें मोह करें ये, तातें आरत हो है। आरतते गति नीची पावै, यों लख मोह तजो है। और परिग्रह जेते जगमें, तिनसे भीति न कीजे । परभवमें ये संग न चालें, नाहक आरत कीजे ॥२५॥ जे जे बस्तु लसत हैं ते पर, तिनसे नेह निवारो। परगतिमें ये साथ न चालें, ऐसो भाव विचारो॥ जो परभवमें संग चलें तुझ, तिनसे प्रीति सु कीजे । पंच पाप तज समता धारो, दान चार विध दीजे ॥२६॥ दशलक्षणमय धर्म धरो उर, अनुकम्पा चित लावो। षोड़शकारण नित्य चिन्तवो, द्वादश भावन भावो । चारौं परवी प्रोषध कीजे, अशन रातको त्यागो । समता धर दुरभाव निवारो, संयमसों अनुरागो ॥ २७ ॥ अन्तसमयमें ये शुभ भाव हि, हो0 आनि सहाई । स्वर्ग मोक्षफल तोहि दिखावै, ऋद्धि देहिं अधिकाई ।। खोटे भाव सकल जिय त्यागो, उरमें समता लाके । जासेती गति चार दूर कर, वसो मोक्षपुर जाके ॥२८॥ मन थिरता करके तुम चिंतो, चौ आराधन भाई। ये ही तोकों सुखकी दाता, और हितू कोऊ नाई ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.034246
Book TitleSamadhi Maran Aur Mrutyu Mahotsav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchand
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages37
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy