SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 20
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मृत्युमहोत्सव । [१७ सुख भोगिये तातै सत्पुरुषकै मृत्युका भय काहे होय। भावार्थअपना कर्तव्यका फल तो मृत्यु भये ही पाइए है जो आप छयकायके जीवनिळू अभयदान दिया अर रागद्वेष काम क्रोधादिकका घातकरि असत्य अन्याय कुशील परधनहरणका त्यागकरि परमसंतोष धारणकरि अपने आत्माकू अभयदान दिया ताका फल स्वर्गलोक विना कहां भोगनमैं आवै सो स्वर्गलोकके सुख तो मृत्यु नाम मित्रके प्रसा. दते ही पाईए तातें मृत्यु समान इस जीवका कोऊ उपकारक नाहीं। यहां मनुष्य पर्यायका जीर्ण देहमें कौन २ दुःख भोगता कितने काल रहता आर्तध्यान रौद्रध्यानकरि तिर्यंच नरकमैं जाय पड़ता तातै अब मरणका भय अर देह कुटुंब परिग्रहका ममत्वकरि चिंतामणि कल्पवृक्ष समान समाधिमरणकू बिगाड़ि भयसहित समतावान हुवा कुमरणकरि दुर्गति जावना उचित नाहीं ॥४॥ और हू विचारै है आग दुःखसंतप्तः प्रक्षिप्तो देहपारे।। नात्मा विमुच्यतेऽन्येन मृत्युभूमिपति विना ॥५॥ अर्थ-यो हमारो कर्म नाम वैरी मेरा आत्माकू देहरूप पीजरेमैं क्षेप्या सो गर्भमैं आया तिस क्षणमैं सदाकाल क्षुधा तृष्णा रोग वियोग इत्यादि अनेक दुःखनिकरि तप्तायमान हुवा पड़या हूं अब ऐसे अनेक दुःखकनिकरि व्याप्त इस देहरूप पीजराते मोकं मृत्यु नाम राजा विना कौंन छुड़ावै । भावार्थ-इस देहरूप पीज For Private and Personal Use Only
SR No.034246
Book TitleSamadhi Maran Aur Mrutyu Mahotsav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchand
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages37
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy