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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अर्थात् मृत्यु मनुष्य के साथ चलती है, साथ ही बैठती है, वह हर क्षण साथ लगी रहती है, पता नहीं कब दबोच ले ? 'सूत्रकृतांग' सूत्र में भी कहा गया है'सेणे जहा वट्यं हरे, एवं आउखयम्मि तुई' अर्थात् एक ही झपाटे में बाज जैसे बटेर को मार डालता है, वैसे ही आयु क्षीण होने पर मृत्यु भी जीवन को हर लेती है। प्रायः हम देखते हैं कि जो वीर, शूर, बली अपने आपको कहते हैं, लेकिन मृत्यु के समय वे भी बड़े भयभीत पाए जाते हैं। वे रोते, गिड़गिड़ाते अपने प्राणों को छोड़ते हैं, इससे स्पष्ट है कि भव की यह चरम सीमा है। मरण-भय को जिसने जीत लिया, फिर उसे किसी भी तरह का भय परेशान नहीं करता । मृत्यु सदा से हा एक रहस्य रही है। मृत्यु के भय से समस्त जीवन निर्जीव सा हो जाता है। जिस वस्तु से हमें भय लगे उसके बारे में अधिक से अधिक जानकारी की जाय, यही भय को दूर करने की रामबाण औषधि है। मृत्यु के बाद शरीर निर्जीव हो जाता है। उसे जलाने, गाढ़ने या कहीं डालने से किसी प्रकार का कष्ट नहीं होता, यह तथ्य जानने के बाद भय को मन से For Private and Personal Use Only
SR No.034243
Book TitleMrutyu Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorP M Choradia
PublisherAkhil Bhartiya Jain Vidvat Parishad
Publication Year1988
Total Pages49
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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