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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुचरिक) होय । ते खावे उह पंखिया, थवर न खावे कोय ७२ ॥ मासाहस मुखसुं कहे, मेरी साहस जोय रखे कोइन कीजियो, थोर पंखियो सोय ॥ ७३ चौपाय) उसके देखा देखी और, बाघके मुखमे पैठे दौर । तिसको दाव रखे मृगराज, तैसे खामी करते काज ॥ ४ ॥ परकी होड़ करे जो कोय, थाखिर उसको बहुमुख होय । तुमने देख सुधर्मा स्वाम, देखा देखी करते काम ॥ ५ दिक्षा लेने को तुम जए, असा साहस मत करनए । सुधर्मा मासाहस समान, और पंखिया तुमहो जान ॥७६ दिक्षा कठिन बहुत है स्वाम, मुक्कर ब्रत पालनको काम । उखसुं पाली जाती सही, एती बात मै तुमसों कहो ॥ 9 ॥ मासाहस सम साहस धरें ते प्राणी नवसागर तरें। त्रियासातमी पैसे कही सुनी बात जम्न सब सड़ी ॥ son (दोहा) तव नम्बू स्वामी मोम स्त्री सुन बात । हुँ धरम मित्रसुं हित करूं, श्रोस्न सौ न सुहात ॥ ए॥ एहिज अम्बनीपमे, भरत खेत्र मझार । जित सत्रु राजा बसें, धान दान विस्तार ॥ ७० ॥ मंत्री नाम सुबुद्धि जो, तीन मित्र है तास । नित मित्र - - - For Private and Personal Use Only
SR No.034240
Book TitleJambu Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChetanvijay
PublisherGulabkumari Library
Publication Year
Total Pages135
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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