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मम् वरित्र ।
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बहु सैनमे जिदां । लाज न थाइ तुकको ध्याज उद सुसराकी कीन्दी लाज ॥ १० ॥ सती बाज कर बोली नदी, तुमको लाज न थाइ कहीं । तें तो जूता सी कहे, मेरी बहुतो सात्री रहे ॥ १७ बूढा कदि हकीकत सर्वे, बेटा तो नदि गानी तदे जूटा हुया बुढा तब सही, सुद्ध चेतना पानी कड़ी २० ॥ ( दोहा ) बहु कड़े सुसरा मुळे, दीन्हा आज कलङ्क । करूं धीज परतीतको, तो भै निस ॥ २१ ॥ साच जूट निर्णय करुं करी प्रतिज्ञा याज । जव कलङ्क मुक्त मेटिदें, तब रद्दसी मुक साज ॥ ११ ॥ नगर माहि इक बको, देव लड़ें निराम। मूरत सोने यक्षकी, ते जानेव गाम ॥ १३ ॥ जूठा निकले पगबिचें, दाव रखे ते यक्ष । साचा ततखिण नीकलें, सब देखे परतक्ष २४ ॥ साच झूठ इम जानिये, यक्षदेव परसाप । चेतनता सुध होयके, श्रोता सुनियो बात ॥ २५ चौपाइ ) धीज करनको चाली बहु, मिला खलक देखनको सहु । जीड़ नइ खाये सब लोग, बहू आरसे लियो संजोग ॥ २६ ॥ तवते बहु जारसुं कही, एक फन्द कीजो तुम सड़ी। स्नान करी
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