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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११६ : परदेशी रामाकी चौपाइ । । पळे पड जाय ढीलोरे, तुं फागुण सरिखो बाग हो राजामति हुवेरे ॥ ५७ ॥ हिवडा में बैगरे, थारा नाक के सैगरे, मैं विहार करी जावांरे, श्रन्यगाम सिधावारे, तुं मटके वैरागी हो, राजा मलि हुवेरे ॥ १७ ॥ चारे रमणिकोरे, विधी तोपे शीखोरे, धरम पायो बैनीकोरेइणमें रहि वीकोरे, जो टीको तुक आवे हो, शिव रमणी तणारे ॥ ५५ ॥ दोहा॥ अरमणिक प्रजु में नहीं, धरम थकी अनुराग। सात सहस गाम खालसे, करं तिणरा चोनाग ॥ ६॥ एक जाम राणीयां निमित्त, एक जाग खजान । एक जाग हाथी घोडला, एक नाग देवं दान ॥ ६१ ॥ मोटी शाला मंडायनें, अशनादिकः निपजाय । श्रमण मांडण साक्यादिने, पुर्बल दान दिराय ॥ ६ ॥ आपे विधी वरत जे, पालु चोखा स्वाम । पोसा पडिकमणां करी, सारं थातम काज ॥ ६३ ॥ इत्यादिक बोली करी, नव्या गुरुना पाय । नाव सहित वंदना करी, आया जिण दिस जाय ॥ ६४ ॥ केशि सरिखा गुरु मिख्या, चित्त सरिखा परधान । एसा पापी जीबने, आयो धरमच्चे For Private and Personal Use Only
SR No.034240
Book TitleJambu Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChetanvijay
PublisherGulabkumari Library
Publication Year
Total Pages135
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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