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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra eMoonDe www.kobatirth.org ENGOKOONG * हीरविजयसूरिजी के उपदेश से ३०३ संधपतिओ ने संध निकाला था। अकबर के सामने अपना मस्तिष्क नहीं झुकानेवाले मेवाड केशरी महाराणा प्रतापने 'जगद्गुरू हीरविजयसूरिजी को अपने आंगन में पधारने के लिए आमंत्रण दिया था । ' एक समय खंभात नगर के प्रवेश समय, हीरविजयसूरिजी के प्रत्येक चरण कमल में दो-दो सुवर्णमुद्रा १ रू, और मोती का साथिया रखने के द्वारा गुरूपूजन किया था । उस दिन भक्तोंने १ करोड जितना रजतद्रव्य का खर्च किया था । दक्षिण में अभ्यास करके ये मुनि गुरूके पास वापिस आये, तब उसी समय, खडे खडे, नये बनाये हुये १०८ काव्यों से गुरूकी स्तुति की, और बाद में द्वादशावर्त वंदन (उत्कृष्ट गुरूवंदन) किया, यह मुनि थे हीरहर्षविजय - १. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir * हीरविजयसूरिजी का जब स्वर्गवास हुआ तब उससे ४ घडी (डेढ घन्टे ) पहले अपनी छत पर रहे हुये एक ब्राह्मण ने "चलो जल्दी दर्शन करें" ऐसा वार्तालाप सुना था और आकाश में 'देवविमान' देखा था । ONDOMOG * जिस दिन जगद्गुरू का अग्निसंस्कार हुआ, उस रात्रि खेत में रहनेवाले लोगों ने आम के बगीचे में होनेवाले 'दिव्य नाट्यारंभ' को देखा था । Co 62 For Private and Personal Use Only
SR No.034239
Book TitleJjagad Guru Aacharya Vijay Hirsuriji Maharaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhratnavijay
PublisherJagadguru Hirsurishwarji Ahimsa Sangathan
Publication Year
Total Pages83
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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