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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Do जहां आपका अग्नि संस्कार हुआ था । इसके आसपास की २२ वीघा जमीन बादशाहनें जैन संघ को अर्पण की थी । वह स्तुप बनाकर पगलांकी प्रतिष्ठा की गई । જગદગુરૂ શ્રીહીરવિજયસૂરીશ્વરજી દાદા Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इधर विजयसेनसूरिजी उग्र विहार करते ( भा.व.छ को) पाटण पधारे । आपनें सोचा, गुरूजीका सुखद समाचार सुनेंगे। किंतु इधर तो आपको हृदय - भेदक गुरूवरके कालधर्मके समाचार मीलें तुर्त ही निश्चेत बनके गीर गये । और भगवान गौतम स्वामीकी तरह गुरू-विरह के मारे अति हृदयद्रावक आक्रंद के साथ ज्यादा बोलने लगे तीन दिन ऐसा रहा । पाटणका सारा संघ एकत्र हुआ। आपको बहुत समझाया और चित्त स्वस्थ कराया । आपनें आहारपाणी लिया । वहांसे आप उना की ओर पधारे । T इधर चमत्कार एक ऐसा हो गया कि, जब सूरिजीको अग्निदाह दिया । तब सारे आम्रवृक्ष पर फल-महोर आ गये । वंध्य आम के पेड थे इस पर भी फल आ गये । वैशाखमें आने वाले आम फल भाद्रपद में कैसे आये सब आश्चर्यमें पड गये । सब फल बडे-बडे शहरमें, अबुलफजलको और बादशाहको भेजे गये, और सूरिजीके चमत्कारका पत्र भेजा गया । जिससे बादशाहकी सूरिजी के प्रति भक्ति - श्रद्धा और बढ गई और उन्होंने स्तुति भी की । 33 For Private and Personal Use Only NGOLDONG
SR No.034239
Book TitleJjagad Guru Aacharya Vijay Hirsuriji Maharaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhratnavijay
PublisherJagadguru Hirsurishwarji Ahimsa Sangathan
Publication Year
Total Pages83
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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