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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Xat,Bekas,bekas emas/*as,exas,mekas,BekasX3 सूरिजी के मुनिवरो में कई व्याख्यान विशारद और कवि थे । कई योग ध्यानी एवं उग्रतपस्वी थे । शतावधानी-क्रिया कांडी एवं तार्किक-नैयायिक थे । और साहित्य इत्यादि भिन्न-भिन्न विषय के प्रकांड विद्वान भी थे । जिससे अनेक लोगों प्रभावित होते थे । इसमें से दो-तीन अग्रणी आचार्यादि श्रेष्ठ मुनि पुङगव की पहिचान कराता हूं । जो सूरिजी के कडे आज्ञांकित और माननीय थे। विजयसेनसूरि - - - आपका जन्मस्थान नाडलाइ था | जब आपकी सात साल की उम्र थी तब पिताने संयम लिया था और नौ साल की उम्र हुई तब आपने, अपनी माता के साथ सुरत में वि.सं. १६१३ ज्ये. सु. १३ के मंगल दिन दीक्षा ली थी । आप इतने विद्वान थे कि आपने योगशास्त्र के प्रथम श्लोकके ७०० अर्थ किये थे | आपको वि.सं. १६२६ में पंन्यासपद और वि.सं. १६२८ में उपाध्याय और आचार्यपद से अलंकृत किया गया था | अहमदाबाद-पाटणकावी आदि नगरों में चार लाख जिनबिम्बों की आपने प्रतिष्ठा की थी । और तारंगा-आरासर-सिद्धाचल आदि मंदिरों का जिर्णोद्धार भी कराया था । जब आप गच्छनायक हुये थे तब आपके समुदायमें ८ उपाध्याय, १५० पंन्यास और बहुत साधु विद्यमान थे । आप ६८ साल की आयु पुर्णकर खंभात के परा-अकबरपुरमें स्वर्ग सिधाये थे । शांतिचन्द्रजी उपाध्याय - आपके गुरू सकलचन्द्रजी थे । आपने इडर और सुरत में दिगंबराचार्य के साथ वाद करके विजय प्राप्त किया था । वि.सं. १६५१ में आपने जंबुद्विपपन्नति की टीका करी है | आपके चारित्र के प्रभाव से वरूणदेव सदा आपके सान्निध्य में थे । इसलिये आपनें बादशाहको कई चमत्कार बताकर अहिंसा और शासनकी प्रभावना करी थी । पाठकवर भानुचन्द्रजी - - - आपकी जन्मभूमि सिद्धपुर थी । आप बचपण से बहुत चतुर थे । आपका दुसरा भाई भी था । आप दोनों साथ SARESHESEARDSMISSRDSHASSACBSHSSCRIBSMEBSCBSMISSIRESHESARIDGHTS 26 For Private and Personal Use Only
SR No.034239
Book TitleJjagad Guru Aacharya Vijay Hirsuriji Maharaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhratnavijay
PublisherJagadguru Hirsurishwarji Ahimsa Sangathan
Publication Year
Total Pages83
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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