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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७१ एक वक्त अकबर बादशाह और उपाध्याय शान्तिचन्द्रजी परस्पर विनोद की बातें कर रहे थे। उस वक्त अकबर ने कहा कि महाराज! कुछ चमत्कार तो दिखलाओ उत्तर में उपाध्यायजी ने कहा कि चमकार देखना चाहते हो ? अगर देखने की इच्छा है तो मेरे साथ आप के बगीचे में चलिये। फिर क्या था ? तुरन्त ही अकबर और उपाध्यायजी बगीचे में गये। वहां पर शान्तिचन्द्रजी ने अकबर के पिता हुमायु आदि सात दादा प्रदादा का दर्शन अकबर को करवाया। अकबर इस प्रकार उपाध्यायजी के चमत्कार को देख कर बड़ा आश्चर्य में पड़ गया। और जैन धर्म के प्रति अटल श्रद्धा अकबर के हृदय में हो गई । यह सब उपाध्यायजी की अनुकम्पा का फल है। एक समय अकबर ने कटक देश पर चढ़ाई की, उस समय उपाध्याय श्री शांतिचंद्रजी भी गुरुजी की याज्ञा से साथ गये । विहार इतना लम्बा हुआ कि एक ही दिन में ३२ कोस काटना पड़ा। पांव सूझ गये ! बड़ी तकलीफ हो गई, फिर भी गुरू की आज्ञा पालन करने में तल्लीन थे । अकबर ने तपास करवाई, पता चला कि उपाध्यायजी को लम्बे विहार की वजह से बहुत पीड़ा हो गई है। फिर अकबर ने प्रार्थना की, महाराज ! यद्यपि आप गुरु के बड़े प्रिय हैं, और उनकी आज्ञा पालन में भी बड़े सावधान हैं। लेकिन मेरा अनुरोध है कि आज पीछे इतना लम्बा प्रयाण न करें, धीरे धीरे आप पीछे से पधारें। मेरे साथ इतना कष्ट न उठावें । फिर वैसा ही किया गया। कटक देश पर आक्रमण करते करते और लड़ते झगड़ते बारा वर्ष व्यतीत हो गये, परन्तु जय पराजय का कुछ भी अनुभव नहीं होने पाया तब अकबर के समीपस्थ कर्मचारियों ने अकबर से एकान्त में निवेदन किया । हुजूर आपके साथ श्वेत वस्त्रधारी जो जैन साधु है इन्हीं के कारण आपकी विजय नहीं हो रही है। इन नीच महात्माओं For Private and Personal Use Only
SR No.034238
Book TitleJagad Guru Hir Nibandh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavyanandvijay
PublisherHit Satka Gyan Mandir
Publication Year1963
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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