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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हमने गुजरात में रहने वाले जैनश्वेताम्बर सम्प्रदाय के प्रधानाचार्य श्री हीरविजयसूरिजी और उनके शिष्यों को अपने दरबार में आमन्त्रण दिया। उनके दर्शन एवं मुलाकात से हमें बहुत खुशी हुई जब वे वापिस जाने लगे तब यह उन्होंने कहा कि आपकी राह से एक ऐसा आम हुक्म हो जाना चाहिये कि सिद्धाचलजी, गिरनारजी, तारंगाजी, केसरियानाथजी और आबूजी के तीर्थ जो गुजरात में हैं तथा राजगृह के पांच पहाड़ और सम्मेत शिखरजी उर्फ पार्श्वनाथ पहाड़ जो बंगाल में है, उन सभी पहाड़ों के नीचे सभी मन्दिरों की कोठियों के पास तथा सभी भक्ति जगहों में जैन श्वेताम्बर धर्म की हैं उनकी चारों ओर कोई भी आदमी किसी जानवर को न मारे, यह मांग की है, अब ये महात्मा दूर देशों से आये हैं और उनकी मांग यथार्थ है। यद्यपि मुसलमानी मजहब से कुछ विरुद्ध मालूम होती है तो भी खुदा (परमेश्वर) को पहिचानने वाले आदमियों का यह दस्तूर होजाता है कि कोई किसी धर्म में दखल न देवे, इस कारण से हमारी समझ में यह अरजी दुरुस्त मालूम दी तहकीकात करने पर भी मालूम हुआ कि ये सभी स्थान बहुत वर्षों से जैन श्वेताम्बर धर्म वालों के ही हैं, अतएव इनकी यह अर्जी मन्जूर की गई है कि सिद्धाचल गिरनार तारंगा केसरियाजी और बाबू के पहाड़ जो गुजरात में हैं तथा राजगह के पांच पहाड़ और सम्मेत शिखर उर्फ पार्श्वनाथ पहाड़ जो बंगाल में है तथा और भी जैन श्वेतांबर सम्प्रदाय के धर्म स्थान जो हमारे ताबे के मुल्कों में है वे सभी जैन श्वेताम्बर सम्प्रदाय के आचार्य श्री हीरविजयसूरिजी के स्वाधीन किये जाते हैं, जिससे शान्तिपूर्वक इन पवित्र स्थान में अपनी ईश्वर भक्ति अच्छी तरह किया करें। । यद्यपि इस समय ये तीर्थ स्थान आदि हीरविजयसूरिजी को दिये जाते हैं परन्तु वास्तव में ये सब जैन श्वेताम्बर धर्म वालों के ही हैं। For Private and Personal Use Only
SR No.034238
Book TitleJagad Guru Hir Nibandh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavyanandvijay
PublisherHit Satka Gyan Mandir
Publication Year1963
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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