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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पिंजड़े में बन्द किये हुए हैं उन्हें निकाल कर स्वच्छंदचारी बना दीजिये आपके शहर के पास डाबर नामका १२ कोस का लम्बा चौड़ा : तालाब है उसमें हजारों जालें तथा वंसीयें रोजाना डाली जाती हैं उनको सर्वदा के लिये बंद कर दीजिये और हमारे पयूषणों के पवित्र दिनों में आपके सारे राज्य में कोई भी मनुष्य किसी भी जीव की हिंसा न करे, ऐसे फरमान की उद्घोषणा कर दीजिये। इतनी बातें सुन कर बादशाह ने कहा महाराज ! आपने अपने लिये तो कुछ नहीं कहा, उत्तर में सूरिजी ने कहा कि संसार में प्राणी मात्र को मैं अपनी आत्मा के समान ही समझता हूँ अतएव उनके हित के लिये जो कुछ किया जायगा वह मेरे ही हित के लिये होगा। इस पर अकबर ने सूरिजी के समक्ष ही जेल में से कैदियों को अभयदान देकर निकाल दिये, पिंजडे में से पक्षियों को निकाल कर गगनमार्गी बना दिये, एवं तालाब में जालें तथा वंसियें डालने की सख्त मनाई करदी और पयूर्षणों के अतिरिक्त ४ दिन अधिक मिलाकर १२ दिन अहिंसा पलाने का हुक्म निकाल दिया। उन हुक्मों के फरमान निम्न प्रकार के हैं पहले सूबा गुजरात, दूसरा सूबा मालवा, तीसरा सूबा अजमेर, चौथा दिल्ली और फतेहपुर, पांचवा लाहोर और मुलतान के गवर्नर को लिखकर भेजा कि अपने अपने समस्त क्षेत्र में कोई भी मनुष्य भा० कृ० १० से लगा कर भा० शु० ६ तक अर्थात् १२ दिन जीव हिंसा न करे, यह असूल हमेशा के लिये कायम समझना, इस प्रकार फरमान लिखकर अकबर ने सूरिजी को भी एक एक प्रति भेंट करदी, इस फरमान के फलस्वरूप आज भी मालवे की धार रिसायत में इस नियम का पालन किया जाता है, ऐसा सुना है। फरमान की नकल इस प्रकार है। ईश्वर के नाम से ईश्वर बड़ा है। महाराजाधिराज जलालुद्दीन अकबर बदशाह For Private and Personal Use Only
SR No.034238
Book TitleJagad Guru Hir Nibandh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavyanandvijay
PublisherHit Satka Gyan Mandir
Publication Year1963
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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