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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हुए काव्यानुशासन काव्य प्रकाश वागभट्टालंकार काव्य कल्पलता छन्दानुशासन बृहद्रत्नाकर इत्यादि ग्रन्थों के भी रहस्य से वाफिक हो गये । न्याय शास्त्र में स्यावाद रत्नाकर अनेकान्त जयपताका रत्नाकरावतारिका प्रमाण मीमांसा न्यायावतार, स्याद्वादकलिका, एवं सम्मति तर्कादि जैन न्याय ग्रन्थ तथा तत्व चिन्तामणि, किरणावली, प्रशस्त पाद भाष्य, इत्यादि शास्त्रों का भी अध्ययन से दिग्गज पांडित्य को प्राप्त कर लिया। तदनन्तर हीरविजयसूरिजी ग्रामानुग्राम पर्यटन करते हुए स्तम्भनतीर्थ पधारे । स्वागत में श्री संघ ने गुरुदेव के चरण विन्यास के प्रतिपाद पर दो मोहरें और एक रुपया रखते हुए एवं मोतियों के स्वस्तिक करते हुए सूरिजी को नगर प्रवेश करवाया, भक्त जनों ने प्रभावनादि धर्म कृत्यों में एक करोड़ राजत द्रव्य का सव्यय कर अमूल्य लाभ लिया, इसी नगरी में रहती हुई एक पुनी नाम की श्राधिका ने बहुत द्रव्य खर्च करके सुन्दर रचनापूर्वक श्री जिनेश्वर देव के प्रासाद की प्रतिष्ठा एवं मूर्तियों की अंजन शलाका पूर्वक स्थापना यथा योग्य स्थान पर करवाई। नगर के लोगों ने जयविमल के पांडित्य को देख कर चकित होते हुए प्राचार्य देव से प्रार्थना की कि गुरुदेव ! जयविमल मुनीश्वर को पन्यास पद देना चाहिये । इस न्याय से सूरिजी ने अपना निश्चय करके संवत १६२६ फाल्गुन शुक्ला दशमी के दिन त्यागी और वैरागी श्री जयविमल को पंडित पद से विभूषित कर दिया। उस समय समस्त श्रीसंघ जय ध्वनि के नारे लगाते हए असीम आमोद से उन्मत्त हो गये। तदनंतर स्तम्भन तीर्थ से विहार करते हुए अहमदाबाद आ पहुँचे, अहमदाबाद के समीपस्थ अहमदपुर के शाखापुर में आपने चातुर्मास आनंद पूर्वक किया। For Private and Personal Use Only
SR No.034238
Book TitleJagad Guru Hir Nibandh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavyanandvijay
PublisherHit Satka Gyan Mandir
Publication Year1963
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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