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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथाय नमः ॥ जगद्गुरु हीर-निबन्ध परिवर्तनशील संसार में उन्नति अवनति का चक्र घूमा ही करता है। जब मानव धर्म भावना से नीचे गिरने लगता है, तब प्रकृति के नियमानुसार कोई न कोई महापुरुष का अवतार हो जाता है । वे अपनी शक्ति के द्वारा मानव को नया मोड़ दे जाते हैं । सरल परिणामी मानव उससे यथेष्ट लाभ उठा कर जीवन को सार्थक बना लेता है; भाग्यहीन मानव व्यर्थ खो बैठता है। यहां पर एक विशिष्ट गुण सम्पन्न नाम वाले महापुरुष का वृत्तान्त लिखा जा रहा है जो कि संसार में अपना कीर्ति-स्तम्भ स्थापित कर चले गये। यहाँ लिखने का उद्देश्य यही है कि उस महापुरुष के द्वारा किये गये धर्म प्रभावना के कार्य की जानकारी बाल, वृद्ध और युवा सभी को हो सके। जिससे प्रेरणा लेकर के आगे बढ़े। यद्यपि श्रमण भगवान महावीर के ५८वें पट्टधर अकबर प्रतिबोधक जगद्गुरु श्रीमद् विजयहीरसूरीश्वरजी का गुणगान स्वल्प बुद्धि से होना परम दुष्कर है । फिर भी "शुभे यथाशक्तिः यतनीयं" नीति के अनुसार प्रयास किया जा रहा है। चूकि कदाचित् निराशा में भी आशा का दीप जल उठता है और महापुरुष का गुणगान श्रेयष्कर हुआ करता है। चरित्र नायक जगद् गुरुदेव का जन्म पालनपुर में हुआ था। पालनपुर का इतिहास इस प्रकार कहते हैं कि प्राचीनकाल में एक प्रल्हाद नाम का राजा राज्य करता था। उस राजा ने कुमारपाल महाराज की बनाई हुई स्वर्णमय श्री शान्तिनाथ भगवान की मूर्ति को For Private and Personal Use Only
SR No.034238
Book TitleJagad Guru Hir Nibandh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavyanandvijay
PublisherHit Satka Gyan Mandir
Publication Year1963
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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