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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मालूम कितना उपकार करते ? यह अनिर्वचनीय है, अंत में सविनय यही प्रार्थना है कि छिद्रान्वेषण को परित्याग करते हुए गुण के पक्षपाती होकर महावीर स्वामी के परम्परागत विजय हीरसूरि जी आदि महापुरुषों से उपदिष्ट प्राप्त वचन पर अटल विश्वास रख कर अपनी आत्मा को ज्ञान ज्योति में लवलीन करते हुए अवश्य आत्म कल्याण करें । हमें सोचना चाहिये कि जब यवन जाति अकबर भी हीर वचनामृत पान करके सदैव के लिये अमर सा बन गया तो हमसे क्या आलस्य है ? हम स्वयं पूर्व उपार्जित कर्मों से पूत हैं एवं उच्च शिखर की सीढ़ी पर प्रारूढ़ हैं। __ मैं आशा रखता हूँ कि वर्तमान स्वतन्त्र भारत के अनुसार आधुनिक उपदेशक श्राचार्य एवं शिक्षक श्रादि भी ममत्वपनाको मिटा कर अहिंसोपासक जगद् गुरुदेव का अनुकरण करते हुए भेदभाव को भी अक्षरशः मिटाते हुए वास्तविक उन्नति के शिखर पर चढ़ेंगे। अन्यथा भारत की उन्नति के बजाय अपनी आत्मा की भी उन्नति आकाश कुसुम के जैसी परम असम्भव होगी। इष्टदेव हमें सद्बुद्धि प्रदान करें। ताकि हम अनुपम सुख प्राप्त कर सकें। ॐ शान्तिः !!! जय हीर ! ! ! श्री हिमाचलान्तेवासिमुमुक्षु भव्यानंद विजय-(व्याकरण साहित्य रत्न) For Private and Personal Use Only
SR No.034238
Book TitleJagad Guru Hir Nibandh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavyanandvijay
PublisherHit Satka Gyan Mandir
Publication Year1963
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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