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फागणनो केशुडो फाली रहे तेम आसमये भरतक्षेत्रमा मुनिसुव्रतस्वामी अने नमिनाथ प्रभुनो अंतरीत काळ हतो. ___तप ज्वालाथी अनादिकर्ममलने दूर करी धनधाती चारे कर्मोने भस्मीभूत करवा मांडया...आत्माना सुक्ष्मचितवन अने शुभ अध्यवसाय रूप शुक्लध्यानथकी प्रभु सीमंधर स्वामी पंचज्ञानना मालोक बनी गया. जीवननो तमस्कार भेदाई गयो अजवाळानी हेली वरसी.
हवे प्रभुजीने दुनियानो कोई पदार्थ, कोई प्राणी, कोई काळ के कोई भाव अजाण नथी ?
पीछाण थई गई समस्त लोक अलोकनी देवदुंदुभी गडगडी रही गगनमा...
शांत थया नरकावासना नारको क्षणभर . देवेन्द्रो आवी रहया अबनीना आंगण पर...प्रभुजीना ज्ञानपूंजने सत्कारवा, बहुमानथी.. कारण प्रभुजीना पुण्यरुपी दुतीए सुरलोकना सुधोषा घंटा वजावी इशानेन्द्रन सिंहासन चलायमान थतां इंद्रे उपयोग मुक्यो ज्ञाननो अने अत्यंत प्रमोदरस अने भक्ति परवश बनी तिवना करी
अंते प्रभुजीनी सेवामां हाजर थयो. चोसठ इंद्रोए प्रभुजीने नमस्कार कर्यो.
वायुकुमारे एक योजन प्रमाण भूमि कंटक कंकर दूर करी, समान सपाटोमय बनावी दोधा...
मेघकुमारे सुगंधी जल सींच्यु.
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