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________________ (७) (८) दर्शन परि० के ३ भेद हैं-सम्यग्दर्शन, मिथ्यादी और मिश्रदर्शन. .. () चारित्र परि० के ७ भेद हैं-सामायिक चा०, छेदो पस्थापनीय०, परिहारविशुद्धी, सुक्ष्मसंपराय० यथाख्यात. प्रचारित्र और चरिताचारित्र. (१०) वेद परि० ३ भेद हैं-स्त्री, पुरुष, नपुंसक. उपर लिखे दश द्वारोंके ४५ बोल हैं और समुचय जीवमें (१) अनेन्द्रिय (२) अकषाय (३) अलेशी (४) अयोगी (५) अवेदी ये ५ बोल भी मिलते हैं इनको मिलानेसे ५० बोल होते हैं। समुचय जीव पूर्वोक्त ५० बोलपने प्रणमते हैं । इसलिये ५० बोल अस्ति भाव माना है. (१) नारकीके दंडकमें २६ बोल गति एक नारकी, इन्द्रिय पांचों ५, कषाय ४, लेश्या ३, योग ३, उपयोग २, ज्ञान ६, (झान ३ अज्ञान ३), दर्शन ३, चारित्र एक असंयम, वेद एक नपुंसक कुल २९ बोल पावे. (११) भुवनपति और व्यन्तरमें ३१ बोल=२९ पुर्वोक और एक लेश्या और एक वेद अधिक. (३) ज्योतिषी, सौधर्म, ईशान देवलोकमें २८ बोन-तीन लेश्या कम करनी. (५) तीजेसे बारहवें देवलोकमें २७ बोल एक वेद कम करना. .. (१) नौवेको २६ बोल-एक रष्टि कम करनी.
SR No.034233
Book TitleShighra Bodh Part 11 To 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1933
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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