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________________ ( ५५ ) धर्मादि ३ बोला नहीं हो सकते, दूसरी अपेक्षा यदि रत्नप्रभा नरक दो विभाग कर दिये जाय एक मध्यविभाग, दूसरा अन्तविभाग और फिर उत्तर दिया जाय तो इसमें धरमपदका अस्तिता होता है. यथा यह रत्नप्रभा नरक द्रव्यापेक्षा (१) धर्म है क्योंकि मध्यके भागकी अपेक्षा बाहर (अन्त) का भाग चर्महैं. (२) जचर्म मी है क्योंकि अन्तेकेमागकी अपेक्षा मध्यकाभाग अधर्म. क्षेत्रकी अपेक्षा (३) धर्मप्रदेश हैं (४) अधर्मप्रदेश भी है क्योंकि अन्त के प्रदेशकी अपेक्षा मध्यके प्रदेश अधर्म है. जैसे रत्नप्रभा नारकी कही वैसेही सातों नरक १२ देवलोक १. मैवेक ५ अनुत्तरये १ इसीत्प्रमारापृथ्वी १ लौक और १ अलौक एवं ३६ बोलों को उपरवत् चार चार बोल लगानेसे १४४ वोल होते हैं. उपर बताये हुवे रत्नप्रभादि ३६ बोलोंके चर्मप्रदेशमें तारता है, उसकी अल्पबहुत्व कहते हैं. (१) रत्नप्रभा नारक के चर्माचर्म द्रव्य और प्रदेश की अल्पा० [१] द्रव्याल्पा ० (१) सबसे स्तोक अचर्मद्रव्य (२) चर्मद्रव्य असं ० गु० (३) धर्माचर्म द्रव्य वि० । [२] प्रदेशाल्पा ० (१) सबसे स्तोक चर्मप्रदेश (२) श्रचर्मप्रदेश असं ० गु० (३) धर्माधर्म प्रदेश वि० [३] द्रव्य और प्रदेशकी सामिल अल्पा ० (१) सबसे स्तोक अधर्मद्रव्य (२) चर्मद्रव्य असं० गु०
SR No.034233
Book TitleShighra Bodh Part 11 To 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1933
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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