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________________ (७२) सिवाय बचत खनानेमें जमा होती थी . परन्तु म्है आपका उद्धार वृतिका धर्म श्रवण किया है वास्ते मेरी भावना है कि इन्ही ७.०० ग्रामोंकि आवन्दके च्यार भाग करूगा निस्मे एक भाग तो अंतेवर आदिकों, एक भाग शैन्याकों, एक भाग खनानामें जमां, और एक भागकि विशाल दानशाला करवायके प्रतिदिन असान पान खादिम स्वादिम बस्त्रादि दान देता रेहूगा और शील, व्रत पञ्चरकान पौषद उपवासादि धर्मक्रिया करता रहुगा वास्ते हे भगवान आप पुरणतये खातरी रखिये म्है रमणीकका अरमणीक कवी मी नही होहुगा । यह बात केशीश्रमण ध्यान पूर्वक श्रवण करके राजाको दढ धर्मी जाना । प्रदेशी राजाने केशीश्रवण भगवानकों वंदन नमस्कार कर अपने स्थानपर चला गया तत्पश्चात् राजा संसारको असार समझता हुवा उन्ही अस्थिर राजपाटकि सार संभल न करता हुवा अपने आत्मकल्याणके कार्य करता रहा अर्थात् श्रावकके व्रतोंको ठीक तरहे पालन कर रहा था। केशीश्रमण भगवान वहांसे विहारकर अन्य जिनपद देशमें गमन करते हुवे । देखिये संसारकि सवार्थवृति जब प्रदेशी राजा मात्मकार्यमें ध्यान लगा देनेसे राज अंतेवरकि सार संभार करना. छोड दीयाथा, तब सुरिकता राणीने दुष्ट विचार कियाकि यह राजा तो मेरी और राजकि कुछ भी सारसंभार नहीं करता है अर्थात् मेरे साथ काम भोग नही भोगवता है तो मेरे क्या कामका अगर एसाही हो तो म्है इन्हीकों विष-शस्त्र तथा अग्निका प्रयोगसे जांनसे मार डालु और मेरा पुत्र सुरिकान्तकों राज देदु,
SR No.034233
Book TitleShighra Bodh Part 11 To 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1933
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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