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________________ (१६) है इन्होंसे जीव शुक्लध्यान रूपी अपूर्व कारण गुणस्थानका आवलम्बन करते हुए च्यार धनघाती (ज्ञानावर्णिय, दर्शनवर्णिय, मोहनिय, अन्तराय कम) कर्मोका क्षय कर प्रधान केवल ज्ञान प्राप्त कर मोक्षमें जाता है। (४२) प्रश्न-प्रतिरूप-श्रद्धायुक्त साधुके लिंग रजो हरण मुखस्त्रादि धारण करनेसे क्या फल होता है। (उ०) साधु लिंग धारण करनेसे द्रव्ये आरंभ सारंभ समारंभ तया परिग्रह आदि अनेक कलेशोंका खजांना जो संसारिक बन्धनसे मुक्त होता है भावसे अप्रतिबंध विहार करते हुवे राग द्वेष कषाय विषयादिसे विमुक्त होता है जब लघुभूत ( हलका ) होके अप्रमतगजपर आरूढ होके माया शल्यादिको उन्मुल करते हुवे बनेकोगम जीवोंका उद्धार करते है कारण साधुका लिंग जग जीवोंको विसवासका भाजन है और कर्म कटकका नाश करनेमें मुनिपद साधक है समिती गुप्ती तपश्चर्य ब्रह्मचर्य मादि धर्म कार्य निर्विघ्नतासे साधन हो सक्ते है इन्होसे स्वपर मात्मावोंका कल्याण कर परंपरा मोक्षमे जाते है। (४३) प्रश्न-व्ययावच्च-चतुर्विध संघकि व्यवावच्च करनेसे क्या फल होता है। (3) चतुर्विध संघकि व्ययावच्च करनेसे-तीर्थकर नाम गौत्र उपार्जन करते हैं कारण व्ययावच्च करनेसे दुसरे जीवोंको समाधी होती है शासनकि प्रभावना होति है भवान्तरमें यश कीर्ति शरीर सुन्दर मजबुत संहननकी प्राप्ती होती है यावत् तीर्थ पद भोगवके मोक्षमे जाते है।
SR No.034233
Book TitleShighra Bodh Part 11 To 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1933
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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