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________________ (१२) (१९) प्रश्न-सुखशय्या में सयन करनेसे क्या फल होता है। (उ०) सुख शय्यापर सयन करनेसे जीवोंके जो चंचलता चपलता अधीर्यता आतुरतादि प्रकृतियों है उन्होंका निष्ट होजाता है इन्होंसे कोमलताभाव होजाते है तब पर जीर्वोको दुखी देखते ही कम्पा होती है और सुख शय्याका सेवन करनेसे शोक रूपी दु. श्मनका नाश होता है इन्हीसे चारित्र मोहनीय कर्म मूलसे चला जाता है तब सुख शय्याके अंदर चरित्र धर्मसे रमणता करता हुवा श्रेणीका अवलम्बन करके शिव मन्दिर पर पहुंच जाते है । (३०) प्रश्न-अप्रतिबंद्ध (गृहस्तादिका परिचयत्याग ) होनेसे क्या फल होता है। . (उ०) अप्रतिबंध होनेसे निःसंग ( संगरहित ) होजाता है निःसंग होनेसे चित्तका एकाग्रपणा रेहता है चित्तका- एकाग्रपणा रेहनेसे राग द्वेष तथा इन्द्रियोंकी विषयका तीस्कार होता है एसा होनेसे जीब आनन्दचित्तसे स्वकार्यसाधन करता हुवा अप्रतिबन्धपणे विचरे ? (३१) प्रश्न-पशु नपुंसक स्त्रियों रहित मकान में रेहनेसे क्या फल होता है। (उ०) एपा मकान में रेहनेसे चरित्रकी गुप्ती अच्छी तरहेसे पल शकती है और विगई आदिसे त्याग करनेकी इच्चा होती है १ श्री स्थानायांग सूत्रके चतुर्थ स्थानेमे च्यार मुख शय्या है । 11) निग्रन्थके वचनों में शंका कक्षा न करना । (२) काम भोगकि अमिलाषा रहित होना । (३) शरीरकि शुभषा विभूषा न करना । (४) आहार पानीकि शुद्ध गवेषना करना ।
SR No.034233
Book TitleShighra Bodh Part 11 To 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1933
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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