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________________ है एक भव्यात्मावोंको विनय करता हुवा देखके अन्य जीवोंको भी विनय करनेकि रुचि उत्पन्न होती है। अंतिम विनय भक्तिका ‘फल है कि जन्मनरा मरणादि रोगोंको क्षय करके मोक्षकों प्राप्त कर लेता है। . (५) प्रश्न-लगे हुवे पापकि आलोचना करनेसे जीवोंको क्या फल होता है। (उ०) लगे हुवे पापकि आलोचना करनेसे जो मोक्षमार्गमें विघ्नभूत और अनन्त संसारकि वृद्धि करनेवाले मायाशल्य, निदानशल्य मिथ्या दर्शनशल्यको मुलसे निष्ट कर देते है । इन्होंसे जीब सरल स्वभावी हो जाते है सरल स्वभावी होनेसे जीक स्त्रिवेद नपुंसकवेद नही बन्धे अगर पेहले बन्धा हुवा हो तो. निज्जरा (क्षय) कर देते है। वास्ते लगे हुवे पापकि आलोचना करने में प्रमाद बिलकुल न करना चाहिये । ___ (६) प्रश्न:-अपने किये हुवे पापकि निद्या करनेसे क्या फल होता है ? (उ०) अपने किये हुवे पापकि निद्या करनेसे जीवोंको पश्चाताप होता है अहो मैंने यह कार्य बूरा किया है । एसा 'पश्चाताप करनेसे जीव वैराग्य भावकों स्वीकार करता है एसा 'करनेसे जीव अपूर्व गुणश्रेणिका अवलम्बन करते हुवे जीव दर्शन मोहनिय कर्मकों नष्ट करता हूवा निज आवास (मोक्ष) में पहुंच जाता है। (७) प्रश्न-अपने किये हूवे पापोंकों गुरु महारानके आगे घृणा करते हुवे जीवोंको क्या फल होता है ?
SR No.034233
Book TitleShighra Bodh Part 11 To 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1933
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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