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________________ श्री रत्नप्रभसूरि मद्गुरुभ्योनमः शीघ्रबोध भाग १५ वां। प्रश्नोत्तर नं० । सूत्र श्री उत्तराध्ययनजी अध्य० २९ (७३ प्रश्नोत्तर)- . आत्म कल्याण करनेवाले भव्यात्मावोंके लिये निम्नलिखत प्रश्नोत्तर बडे ही उपयोगी है वास्ते मौक्ताफलके मालाकि माफिक हृदयकमलके अन्दर स्थापित कर प्रतिदिन सुधारस पान करना चाहिये। (१) प्रश्न-संवेग ( वैराग ) संसारका अनित्यपना और मोक्षकि अभिलाषा रखनेवाले भीवोंको क्या फलकि प्राप्ती होती है। (उत्तर) संवेग ( वैराग ) कि भावना रखनेसे उत्तम धर्म करनेकि श्रद्धा होगा। उत्तम धर्मकि श्रद्धा होने पर संसारीके पौलीक सुखोंको अनित्य समझेगा अर्थात परमवैराग्य भावकों प्राप्त होगा। जब अन्तानुबंधी क्रोध मान माया लोभका क्षय करेगा, फिर नये कर्म न बन्धेगा इन्हीसे मिथ्यात्वकि बिलकुल विशुद्धि होगा। जब सम्यक् दर्शनकि आराधना करता हुवा उसी . मवमें मोक्ष जावेगा, आगर पेस्तर किसी गतिका आयुष्य बन्ध भी गया हो तो भि तीन भवों में तो आवश्यहि मोक्ष जावेगा। . . (२) प्रश्न-निर्वेद (विषय अनाभिलाषा ) भाव होनेसे पीजोहो क्या फलकि प्राप्ती होती है ?
SR No.034233
Book TitleShighra Bodh Part 11 To 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1933
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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