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________________ ११२ कारण संसारके अन्दर एकेक जीव अन्य जीवोंकी घात करते है उन्होंका शास्त्रकारोंने के कारण बतलाया है. (१) जीतव्य-आजीविकाके लिये आरंभादि करे । (२) प्रशंसा-जगत्में अपनि तारीफी करानेके लिये। (३) मान-दुसरेसे अधिक होनेका अभिमानके लिये । (४) पूजा-जनलोकोंके पाससे पूजा करानेके लिये। (५) जन्ममरण मिटानेके लिये या यज्ञहोमादि करणा। (६) दुःख मीटानेके लिये शरीरमें हुइ वेदना मीटाने के लिये। यह छ कारणोंसे हिंसा करते है वह अनार्य कर्मके करनेवाले है उन्हीको भवन्तरे अहितका कारण-अबोधका कारण होगा कारण वह करनेवाले अज्ञानी निथ्यात्व अनार्य है और सम्यग्द्रष्टी तो पूर्वोक्त आरंभकों कर्मबन्धका हेतु जाने मोहकर्मकी गांठ जाने मरणका हेतु या नारकका हेतु जानते है इसी वास्ते समकितसार अध्ययनमें कहा है कि "समत्त दंसी न करोति पावं" इसी वास्ते प्रारंभ परिगृहसे मुक्त हो वीतरागाज्ञाका अाराधन करो इत्यादि । ॥ सेवभंते सेवभंते तमेव सच्चम् ॥
SR No.034233
Book TitleShighra Bodh Part 11 To 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1933
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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