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________________ जोजनका पहला है ४११०६६१ जोजन साधिक परद्धि है उन्ही घातकिखंड द्विपमे उत्तर दक्षिण लम्बा च्यार लब जोजन । पूर्व पश्चिम एक हजार जोजनका पहला मूलमें एक हजार जोजन चोडा यावत् सीखरपर पांचसो जोजन परिमाणवाले दो इक्षुकार पर्वत प्राजानेसे घातकिखंडके दो विभाग हो गये है (१) पूर्व घातकिखंड (२) पश्चिम घातकिखंड इन्ही दोनों विभागके अन्दर दो मेरुपर्वत है वह मेरुपर्वत एक हजार जोजन धरतीमें उढा और ८४००० जोजन धरतीसे उंचा एवं ८५००० जोजनका प्रत्यक मेरु है । वह मेरुपर्वत च्यार वन करके अलंकृत है दुसरे पर्वत या वासा आदि सर्व जम्बुद्धिपसे दुगुणा समझना परन्तु क्षेत्रका लम्बा चोडा अधिक है और घातकिखंड द्विपमें १२ चन्द्र और १२ सूर्य सपरिवार है शेषाधिकार अढाइ द्विपका यंत्रमें लिखा जावेगा इति । घातकिखंड द्विपके चौतर्फ गोल बलीयाकार ८२०००० जोजनके विस्तारवाला कालोदद्धि नामका समुद्र है वह चौतर्फ आठ लक्ष जोजनका पहूला है ६१७०६०५ जोजन साधिक परद्धि है एक पद्माम्बर वेदिका एक वनखंड च्यार दरवाजा और दरवाजे दरवाजे अन्तर २२६२६४६ जो है वह समुद्र हजार जोजनका उढा है अच्छा जलसे परिपूर्ण भरा हवा । कालोदद्धि समुद्रके चौतर्फ गोल बलीयाकार पुष्कर नामका द्विप है वह १६००००० जोजनका चौतर्फ विस्तार
SR No.034233
Book TitleShighra Bodh Part 11 To 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1933
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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