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________________ ८८ मुद्रके ८४०० जोजन क्षेत्रमे युगल मनुष्योंका द्विपा है यह एक लेन (दाड ) पर ७ द्विप है इसी माफीक पूर्व लवणसमुद्रकी ४ दाडो ओर पश्चिम लवणसमुद्रकी ४ दाडो एवं आठ दाडो पर ५६ द्विपा है उन्हो मे रहेनेवाला युगल मनुष्योंका मनोर्वच्छीत सुख दश प्रकारका कल्पवृक्ष पूर्ण करते है इति । : लवणसमुद्रके अधिष्टायक लवणस्वस्थिक देव का गोतम द्विप नामका द्विपा-जम्बुद्विपकि जगतिसे पंश्चिमदिशा १२००० जोजन लवणसमुद्रमे जावे तब १२००० जोजनके विस्तारवालों गोतमद्विपा आता है वेदिका वनखंड कर शोभनिक है उन्ही गोतमद्विपापर स्वस्थिकदेवका प्रासाद है वर्णन करने योग्य है वहापर देव निवास करते है इति । सूर्यका द्विपा-जम्बुद्विपका दो सुर्य ओर अन्दरका लवणसमुद्रका दो सूर्य एवं च्यार सूर्यका च्यार द्विपा गोतम द्विपा के च्यारो तर्फ है अर्थात् सूर्यके च्यारो द्विपोंसे वीटा हवा मध्य भागमे गोतमद्विपा है। चंद्राद्विप-जम्बुद्विपकि जगतिसे पूर्वकि तर्फ लवणसमुद्रमे १२००० जोजन जानेपर दो जम्बुद्विपका चन्द्र दो अन्दरके लवणसमुद्रका चन्द्र एवं च्यारों चन्द्रका च्यारों द्विप है सूर्य और चन्द्रका द्विपा १२००० वाराह २ हजार जोजन विस्तारवाला है उन्ही द्विपोपर अपना अपना प्रासाद है वहाँपर देवता आते जाते निवास करते है ।
SR No.034233
Book TitleShighra Bodh Part 11 To 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1933
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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