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________________ है जिसमें प्रथम गंगानदी-पद्मद्रहके पूर्वदिशाका तोरणसे पूर्वदिशामें ५०० जोजन चुलहेमवन्तपर्वतके उपर गइ वह गंगा वृतनकुट है उन्हीसे टकर खाती हूइ ५२३ जो० ३ कला दक्षिणदिशा पर्वत उपर गइ वहांसे जेसे घटके मुखसे जौरसे पाणी न पडता हो या तुटे हुवे मौतीयोंका हारकी माफीक मगरमच्छके मुंहके आकार जिहासे साधिक १०० जो० उपरसे गंगाप्रभासानामा कुंडमें पाणी पडरहा है वह जिहा आदाजोजन की लम्बी और सवाछे जोजनकी पहली है विकसा हूवे मगरमच्छके मुहके संस्थान है सर्व बन रत्नमय अच्छी सुन्दर आकावाली है जिह्वा-नालिकाको केहते है। चुलहेमवन्तपर्वतपर पद्मद्रहसे गंगानदी गंगाप्रभासकुंडके अन्दर पडति है वाँह गंगाप्रभासकुंड ६० जोजन लम्बो पहूलो १० जो० उढो है जिस्की रुपामय उपकंठा बज्र पाषाणमय तलो है, सुखसे अन्दर जाशके वेसा विवद प्रकारके रत्नकरा बन्धा हुवा है सुवर्णका मध्यभाग, रुपाकी वेलुरेत पात्थरी हूइ है गंभीर शीतल जलसे भरा हुवा है अनेक कमलोंके पत्रसे आच्छादित है बहूतसे कमल उत्पल कमल पन० नलिनंकुमुद० शतपत्र० सहस्रपत्रदि कमल उन्ही गंगाप्रभासकुंडके तीन दरवाजा है पूर्वदिशा दक्षिणदिशा पश्चिमदिशा तीनों दरवाजाके आगे पगोतीया है उन्होंको उपरका भाग रिष्टरत्नमय बैड्यरत्नमय स्थांमा सूवर्ण रुपाका पाटीया लोहीताक्ष रत्नोसें पाटीयोंकि सन्धी जोडी हुइ है
SR No.034233
Book TitleShighra Bodh Part 11 To 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1933
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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