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________________ ( १४ ) तीन, लोकांतिक नव, अवेयक नव, पंचाणुत्तर विमान और मेरो वापी अपेक्षा तिर्यंच भी मिलते हैं। तिर्यचके १८ भेद है जिसमें बादर तेऊकायके पर्याप्ता अपर्याप्ता वर्जके ४६ मेरे मिलते हैं अर्थात् देवताओंके ७६ और तिर्थचके ४६ मिलके १२२ भेद जीवके हैं। (२) अधोलोक मेरूपर्वतकी समभूमिसे ९०० योजन नीचे जावे वहां तक तिरछालोक है , उसके नीचे अधोलोक हैं जिसमें ७ नारकी १० भवनपति १५ परमाधामि और सलि. लावती विजया अपेक्षा मनुष्य और तिथंच भी मिलते हैं अर्थात अधोलोकमें १४ नारकी ५० देवता ३ मनुष्य ४८ तिर्यच सर्व ११५ भेद जीवोंके मिलते हैं। (३) ति लोक-मेरूपर्वतकी समभूमिसे ९०० योजन उर्ध्वलोक अर्थात् ज्योतिषियोंके ऊपरके तले तक और समभूमि से नीचे ९०० योजन एवं १८०० योजन जाडपनेमें तिळलौक हैं जिसमें तिथंचके ४८ मनुष्यके ३०३ देवताधोंके ७२ सर्व मिलके ४२३ भेद जीवोंके मिलते हैं। (४) उर्ध्वलोक, ति लोक ज्योतिषीयोंके ऊपरके तलेका एक प्रदेशके प्रतर और उर्ध्वलोकके नीचेका एक प्रदेशी प्रतर, इन्ही दोनों प्रतरोंको उर्ध्वलोक, तिरछालोक कहते हैं। देवताओं का गमनागमन तथा जीव मरके उर्ध्व लोक या तिरछालोकके अन्दर उत्पन्न हो या गमनागमन करते समय यह दोनों प्रतरोंको स्पर्श करते हैं।
SR No.034233
Book TitleShighra Bodh Part 11 To 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1933
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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