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________________ एवं १५ मीलाके ५५ जिनमन्दिर सास्वता है परिमाण-छे वर्षधर शोलावस्कार च्यार गजदन्ता च्यार भद्रशाल च्यार नन्दनवन च्यार सुमानसवन च्यार पंडगवन एवं ४२ स्थानके जिनमन्दिर पचास पचास जो० लम्बा पचविस पचविस जो० चोडा छतीस छतीस जो० उचा अनेक स्थाभ पुतलीया हार आदिसे अच्छा शुशोभित सर्व रत्नोंमय है उन्ही जिनमन्दिरोंके तीन तीन दरवाजा है प्रत्यक दरवाजा आठ जोजनका उचा च्यार जो० पहला तोरण स्थाभ आदिसे अच्छा मनोहर है. ___ चौतीस वैताड्य आठ देवकूरू आठ उत्तरकूरूके पीठका तथा जम्बुवृक्षका एक सामलीवृक्षका एक और मेरूचुलुकाका एक एवं ५३ जिनमन्दिर एक कोषका लम्बा आदा कोषका पहला १४४० धनुषका उंचा सर्व रत्नमय है इन्ही सर्व सिद्धायतनों अर्थात् जिनमन्दिरोंमें त्रीलोक्य पूजनिक तीर्थकरोंकी शान्तमुद्रा पद्मासनमय मूर्तियों है उन्होंकी सेवाभक्ति अर्चनादि देवदेवी विद्याधर करते है. शेष ४४६ कुंट तथा २०० कश्चनगिरि ४ वृतलवैताज्य ४चितविचित जमगसमग एवं सर्व ६५७ स्थानपर देवीदेवतोंका आवास ( भुवन ) है इति. (६) तीर्थद्वार-जम्बुद्विपमें तीर्थ १०२ है वह लौकिक सास्वता तीर्थ है जिस समय चक्रवरत खंड साधनेकों जाते है
SR No.034233
Book TitleShighra Bodh Part 11 To 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1933
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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