SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 272
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१) भद्रशालवन-मेरुपर्वतके चौतर्फ धरति उपर पूर्व पश्चिम २२००० बावीस हजार जोजन ओर उत्तर दक्षिण अढाइसो २५० जोजनका है एक वनखंड एक वेदीका चौतर्फ है श्यामप्रभाकर अच्छा शोभनिक है । मेरूपर्वत के पूर्व दिशा तर्फ भद्रशालवनमे ५० जोजन जावे तब एक सिद्धायतन (जिनमन्दिर ) आवे वह ५० जो० लम्बो २५ जो० चोडा ३६ जो० उचा अनेक स्थभा पुतलीयों आदिसे सुशोभीत है उन्ही सिद्धायतन के तीन दरवाजा है। वह आठ जोजनका उचा ओर च्यार जोजनका चोडा जीसपर सुपेत गुमटकर सोभायमान है उन्ही सिद्धायतन के मध्य भागमे एक मणिपीट चौतरो ८ जो० लंम्बो चोड। च्यार जो० जाडो सर्व रत्नमय है । उन्ही चौतराके उपर एक देवच्छादो ( जहा जिन प्रतिमा वीराजमान हे उन्ही को मूल गुभारा भी कहा जाते है ) वह ८ जो लंम्बा चौडा-साधिक आठ जो० उचा उचपणे है वर्णन करने योग्य है उन्ही के अन्दर त्रिलोक्य पूजनीक तीर्थकर भगवान कि प्रतिमावों पद्मासन विराजमान है यावत् धूपके कुडचे आदि रहे हुवे है। एवं दक्षिण एवं पश्चिम एवं उत्तर अर्थात् च्यारो दिशामें च्यार जिन मन्दिर पूर्ववत् समझना । मेरूपर्वत से इशान कोनमे भद्रशाल वनमे जावे तब च्यार नन्दा पुष्करणि वावी आति है पद्मा पद्माप्रभा, कुमुदा कुमुदप्रभा वह वावी ५० जो० लम्बी २५
SR No.034233
Book TitleShighra Bodh Part 11 To 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1933
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy