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________________ r IS ० IT ० ar c १ २३०० w ० ac w ० c or or or w ० cc w ० & or or O ० m or w १८२३००, ११ । २३००, १२ २३०० ,, ६०० है ग्री०, २२० ,, १००० ५ अणु, २१०० ,, ११०० (E) वैमान विस्तार-चैमान का विस्तार कितनेक (च्यार भागके ) असंख्यात जोजनके विस्तारवाले है कितनेक ( एक भागके ) संख्यात जोजनके विस्तारवाले है परन्तु सर्वार्थसिद्ध वैमान एकलक्ष जोजन विस्तारवाले है। (१०) इन्द्रद्वार-बारह देवलोकोंका दश इन्द्र है और नौ ग्रीवैग तथा पांचाणुत्तर वैमानका देवोंके इन्द्र नहीं है अर्थात् अहमेन्द्र-सर्व देवता इद्र है वहापर छोटे वडेका कायदा नहीं है दश इन्द्रोका नाम यंत्रमें. ___ (११) वैमानद्वार-प्रत्यक इन्द्र तीर्थकरोंके जन्मादि कल्याणके लिये मृत्यु लोकमे आते है उन्ही समय वैमानमे बेठ के आते है उन्हीका नाम यथा-पालक वैमान, पुप्प वैमान,
SR No.034233
Book TitleShighra Bodh Part 11 To 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1933
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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