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________________ ऋद्धि सूर्यकी, उन्होसे महाऋद्धि चन्द्रकी अर्थात् सर्वसे म्बल्य ऋद्धि तारोंकी ओर सर्वसे महाऋद्धि चन्द्र देवों की है। (२५) वैक्रय-जोतीषी देव वैक्रयसे जोतीपी देवी देवता बनाके सम्पुरण जम्बुद्विप भर दे ओर संख्याता जम्बुद्विप भर देने कि शा है एवं चन्द्र सूर्य सामानीक और देवी भी समझना. __ (२६) अवधिद्वार-जोतीषी देव अवधिज्ञानसे ज० संख्याते द्विप समुद्र देखे उ० भी संख्याते द्विप समुद्र दख उम्म अपने अपने ध्वजा। अधी पहली नरक देख तीरच्छा मंन्याने द्विपसमुद्र देखे। २७) परिचारणा-जातीपी देवोंक परिचारणा पनि प्रकारकी है मनकी शब्दकी रूपकि स्पर्शकी कायाकी अथान जोतीषी देव मनुष्योंकी माफीक भोग विलाश करते है. (२८) सिद्ध-जातीपीयोंसे निकल मनुष्यभव कर एक समय १० जीव मोक्ष जावे, देवी से निकल एक समयमे २० जीव मोक्ष जावे, [२६] भवद्वार-जोतीषी देवासे निकल १-२-३ भत्र ओर उत्कष्ट करे तो अनंन्ताभव भी कर शक्ते है। [३०] अल्पावहत्वद्वार स्तोक चन्द्र सूर्य उन्होमे नक्षत्र संख्यात गु० उन्होसे ग्रहसंख्या० गु० उन्होंने तारादेव संख्यात गु०
SR No.034233
Book TitleShighra Bodh Part 11 To 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1933
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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