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________________ २७ हुवे है इसीसें चैतन्यकि चैतनता प्रगट नहीं होती है वह तो पौद्गलीक सुख है खरा आत्मीक सुख श्री जिनेन्द्र देवोंके धर्मको अंगीकार करनेसे प्राप्त होता है. इति. सेवभंते सेवंभंते-तमेवसच्चम्. थोकडा नं. ५ --0000-- बहूत सूत्रोंसे संग्रह करके. ' ( जोतीषीयों के द्वार ३१) जोतीपी देव दो प्रकारके है (१) स्थिर, (२) चर जिस्में स्थिर जोतीषी पांच प्रकारके है चन्द्र सूर्य ग्रह नक्षत्र और तारा यह अढाइ द्वीपके बाहार अवस्थित है पकी इंटके संस्थान है सूर्य सूर्यके लक्ष जोजन ओर चन्द्र चन्द्रके लक्ष जोजनका अन्तर है तथा सूर्य चन्द्रके पचास हजार जोजनका अन्तर है, अन्दर का जोतीषीयोंसे आदी क्रन्तीवाला है हमेसोंके लिये चन्द्रके साथ अभिच नक्षत्र और सूर्यके साथ पुष्य नक्षत्र योग जोडते है. मनुष्य क्षेत्रकि मर्यादाका करनेवाला मानुसोतर पर्वतके चाहारकी तर्फसें लगाके अलोकसें ११११ जोजन उली तर्फ
SR No.034233
Book TitleShighra Bodh Part 11 To 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1933
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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