SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 233
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नगर असंख्याते और संख्याते जोजनके विस्तारवाले है सर्व रत्नमय है परिमाण भुवनपतियों माफीक. (४) राजधानीद्वार-बाणमित्र और व्यंतर देवोंकी राजधानीयों तीरच्छा लोकके द्वीप समुद्रोंमें है जेसे भुवनपतियोंके राजधानीका वर्णन कीया गया था उसी माफीक परन्तु विस्तारमे यह राजधानी कम है प्रायः १२ हजार जोजन के विस्तारवाली है सर्व रत्नमय है. ___ (५) सभाद्वार-एकेक इन्द्रके पांचपाच सभा है यथा (१) उत्पातसभा (२) अभिशेषसभा (३) अलंकारसभा (४) व्यवायसभा (५) सौधर्मसभा विस्तारभुवनपतिसे देखों. (६) वर्णद्वार-देवतोंका शरीरका वर्ण-'यक्ष पिशाच मोहरग गंधर्व इन्ही च्यारोंका वर्ण श्याम है किंनरदेवोंको निलो वर्ण, राक्षस और किंपुरषको वर्ण धवलों भूतदेवोंको वर्ण कालो इसी माफीक व्यंतरदेवोंके समजना. (७) वस्त्रद्वार-पिशाच राक्षस भूतके निलावस्त्र यक्ष · · किंनर किंपुरषके पीलावस्त्र मोहरग गंधर्वके श्यामवस्त्र.
SR No.034233
Book TitleShighra Bodh Part 11 To 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1933
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy