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________________ वस्तुनिर्देशमें नय कि अपेक्षा अवश्य होती है, वह नय मौख्य दो प्रकारकि है. (१) निश्चयनय, (२) व्यवहारनय. जिस्मे निश्चयनयसे लोकका मध्यभाग प्रथम रत्नप्रभा नरकक अवकाश अन्तराके असंख्यातमे भागमें है. वास्ते अधोलोक संभूमितलासे साधिक सात राज है, और उर्ध्वलोक कुन्छ न्यून सात राज है तथा तीरच्छालोक जाडा १८०० योजनका है, परन्तु व्यवहारनयसे सात राज अधोलोक और सात राज उप्रलोक और तीरच्छालोक उर्ध्वलोकके सेमल माना जाता है, वह व्यवहारनयकि अपेक्षासे ही यहापर बतलाये जावेगा. प्रथम च्यार प्रकारके राज होते है उन्हीको ठीक (२) समझना. (१) घनराज-एक राज लंबा, एक राज चोडा.एक राज जाड हो. (२) परतरराज-एक घनराजका च्यार परतरराज होता है. ( ३ ) सूचिराज--एक परतरराजका च्यार सचिराज होता है. (४) खण्डराज-एक सूचिराजका च्यार खण्डराज होता है. अधोलोक सात राजका जाडपणामें है और अधोलोकमें सात नरक है, वह प्रत्यक नरक एकेक गजकि जाडी है विस्तार यंत्रसे देखो.
SR No.034233
Book TitleShighra Bodh Part 11 To 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1933
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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