SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 18
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१२) सूक्ष्मवायुकाय के पर्याप्ता अपर्याप्ता पृथ्वीकायवत् । (१३) बादरवनस्पतिकाय के पर्याप्ता स्थान कहां है ? जहां पर जल है उन सब स्थानोंमें वनस्पतिकाय हैं। जल में वनस्पति कायकी नियमा हैं। उस्पात; समुद्घात सर्व लोकमें, स्थान खोकके असंख्यातमें भाग है। (१४) बादरवनस्पतिकाय के अपर्याप्ताका स्थान कहां हैं ! जहां पर्याप्ता वहां अपर्याप्ता भी है। उत्पात, समुद्घात, सर्व मोकमें, स्थान लोकके असंख्यातमें भाग हैं। (१५) सूक्ष्मवनस्पतिकाय के पर्याप्ता अपर्याप्ता सर्व लोकव्यापी हैं। यावत् पृथ्वीकायवत् समझना। (१६) बेरिन्द्री, तेरिन्द्री, चौरिन्द्री और तीर्यच पंचेन्द्री के पर्याप्ता अपर्याप्ताका स्थान जहां जल हैं वहां इनकी नियमा है परन्तु उर्ध्वलोक मेरुपर्वतकी वापी तक और अधोलोक सलीला. वतिविजय तक बेरिन्द्री आदि जीवोंके स्थान है। उर्वलोकमें देवलोकोकी वापियो आदिमें बेरिन्दी आदि जीव नहीं हैं। (१७) मनुष्य पर्याप्ता अपर्याप्ताके स्थान कहां है ? अढाई. द्वीपमें पन्द्रह कर्मभूमि, तीस अकर्मभूमि, छपन्न अन्तरद्वीपोंमें मनुष्य उत्पन्न होते हैं । उत्पात, समुद्घात और स्थान लोकके असंख्यातमें भाग हैं। (१८) नारकी पर्याप्ता अपर्याप्ताके स्थान कहां है ? सार्वो नरकके ८४ लक्ष नरकावासमें नारकी उत्पन्न होते हैं। उत्पात, समुद्घात, स्थान, लोकके असंख्यातमें भाग हैं। (१९) देवताओं के पर्याप्ता अपर्याप्ताका स्थान कहां
SR No.034233
Book TitleShighra Bodh Part 11 To 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1933
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy