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________________ - [५६] - संज्ञी मनुष्यमे संवति असंयति संयतासंयति तीनो फार जीव मीलते है। सिद्ध भगवान् नोसंयति नोअसंयति नोसंयतासंयति है। (१) स्तोक संयति जीव (२) संयतासंयति असंख्यात्तगुण (३) नोसंयति नोअसंयति नोसंयतासंयति अनंतगुणा (४) असं इति अनन्तगुणा । इति । मेवंभंते सेवंभंते तमेवसचम् । थोकड़ा नं० १५ सूत्र श्री पन्नवणाजी पद ३४ (परिचारणा पद) (१) अणन्तर आहार (२) अभोगाहार (३) आहारके पुद्गकोंका जानना (४) अध्यवशाय (५) सम्यक्त्व द्वार (६) परिचारणा द्वार। (१) अणन्तर-नारकीके नैरिया उत्पन्न होते समय जो माहारके पुद्गल गृहन करते हैं फिर शरीरको उत्पन्न करते है फिर पुद्गलोंको यथायोग्य परिणमाते है फिर इन्द्रियों निपजाते है फिर उर्ध्व अधोगमन या शब्दादि परिचारणा करते है फिर उत्तर वैक्रय रुप वैक्रय बनाते है इसि माफिक १३ दंडक देवतोंकों भी समझना परन्तु देवतोंमें पेहले वैक्रय करे बादमें शब्दादि परिचारणा करते है च्यार स्थावर तीन वैकलेन्द्रिय यह सात बोलोंमें वैक्रय न होना से नरकवत् पांच बोल केहना और वायुकाय तथा तीर्यच पांचेंद्रिं और मनुष्यमे नरकवत छे बोल केहना द्वारम् ।
SR No.034233
Book TitleShighra Bodh Part 11 To 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1933
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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