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________________ [४७] भी घणा । अकषाय समु० जीव मनुष्य और सिद्ध है जिसमें समु० जीव और मनुष्य एक वचनापेक्षा स्यात् आहरिक स्यात् अनाहारीक बहुवचन समु. आहारीक घणा अनाहारीक भी घणा मनुष्यमें भांगा ३ सिद्ध भागवान एक या बद् वचन अनाहारीक है। एवं ५७-१८-७८-१५-१५-८४-८४-६-५४-३ कुल ४१४ भांगा हूवे. (८) ज्ञानद्वार-सज्ञानी, मतिज्ञानी, श्रुतिज्ञानी समु० जीव और १९ दंडक एक वचन पूर्ववत् बहू वचन जीवादि तीन तीन भांगा परन्तु तीन वैकलेन्द्रिमें छे ले भागा १८-१८-१८ ५१-५१-५१ अवधिज्ञानमें मु० जीब और १६ दंडक है जिसमें तीर्यच पांचेन्द्रि एक या बहू वचन आहारीक है शेष एक वचन पूर्ववत् बहू वचन तीन तीन भांगा ४८ 1 मनःपर्यव ज्ञान समु० जीव और मनुष्य एक या बहूबचन आहारीक है । केवलज्ञान समु० जीव मनुष्य और सिद्ध निसमें समु० जीव और मनुष्य एक बचनापेक्षा स्यात् आहारीक स्यात् अनाहारीक बहू वचनापेक्षा समु० आहारीक घणा अनाहारीक भी घगा मनुष्यमें भांगा ३ सिद्ध एक या बहूत वचन अनाहारीक है। समु. अज्ञान मति अज्ञान श्रुतिअज्ञान जीवादि २४ दंडक एक वचनापेक्षा स्यात् आहारीक स्यात नाहारीक बहू वचनापेक्षा समु० जीव और पांच स्थावरमें आहारीक घणा अनाहारीक भी घणा शेष १९ दंडकमें तीन तीन भांगा ५७-५७-५७ । विभंगा ज्ञानी समु... जीव १६ दंडक जिसमें तीर्यच पांचेन्द्रिय और मनुष्य तो एक या बहू वचनापेक्षा आहारीक है शेष समु
SR No.034233
Book TitleShighra Bodh Part 11 To 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1933
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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