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________________ [ ४० ] (१) प्रचला-बैठा बैठा निद्राले (४) प्रचलाप्रचला - चलता हुवा निद्राले. (१) स्थनद्धि - दिनका चिन्तन किया कार्य निद्रामें करे. इस निद्रामें वासुदेव जितना बल होता है. (६) चक्षुदर्शनावर्णिय बराबर देख नहीं सकता. 11 (७) अचक्षु दर्शनावर्णिय - चक्षुके सिवाय चार इन्द्रियोंसे सम्पूर्ण काम न ले सके । (८) अवधिदर्शनावर्णिय- अवधिदर्शनहोने न दे. (९) केवल दर्शनावणिय केवल दर्शन होने नदे. (३) इसी माफक वेदनी कर्म भी समझना परन्तु वेदनी कर्मके दो भेद है. साता वेदनी और असातावेदनी जिसमें सातावेदनी का अनुभाग ८ प्रकारका है. (५) मनोज्ञश, रूप, गन्ध, रस, स्पर्श. (६) मन हमेसा अच्छा रहना ( समाधी से ) (७) वचन हमेसा अच्छा रहना ( मधुर बोलने से ) (८) काय - अंगोपांग अच्छा होना ( हाथकी चतुरतादि ) असातावेदनीका इससे विप्रीत अशुभ फल समझना. (४) मोहनिय कर्मके उदय अनुभागके पांच भेद हैं यथा. (१) मिध्यात्व मोहनीय- इसके उदयसे वस्तुकी विप्रीत श्रद्धा होती है. (२) मिश्रमोहनीय - इसके उदयसे मिश्रभाव होता है. (३) सम्यक्त्व मोहनीय - इसके उदयसे वस्तुकी यथार्थ श्रद्धा होती है परन्तु क्षायक सम्यक्त्व प्राप्त नहीं होने देता.
SR No.034233
Book TitleShighra Bodh Part 11 To 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1933
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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